पूर्व इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन: ‘मॉम’ को मंगल पे पहुंचाया, वैज्ञानिक जो कथकली और शास्त्रीय गायकी में भी बेमिसाल

नई दिल्ली, 29 अगस्त . 5 नवंबर 2013 को भारत ने ‘मॉम’ का मर्म समझाया. पहली बार में ही मार्स ऑर्बिटर मिशन को सफलता से मंगल की कक्षा में स्थापित करा दिया. ये शानदार उपलब्धि इसरो अध्यक्ष डॉ. कोप्पिलिल राधाकृष्णन की अगुवाई में संपन्न हुई. अभूतपूर्व पल था. मां भारती का मस्तक गर्व से ऊंचा करने वाले इस साइंटिस्ट का 29 अगस्त को जन्मदिन है. देश को गौरवान्वित करने वाले राधाकृष्णन के लिए क्या ये सब आसान रहा, उनकी इस उपलब्धि को पत्नी पद्मिनी के अलावा और किसने संभव बनाने में मदद की? आइए जानते हैं…

के राधाकृष्णन की आत्मकथा- माई ओडिसी: मेमोयर्स ऑफ द मैन बिहाइंड द द मंगलयान मिशन में जीवन के कई राज खोले. बताया कि कैसे मानसिक दबाव की स्थिति में उन्हें शास्त्रीय गायन ने सहारा दिया. उन्होंने एक जगह लिखा है- मैंने खुद को स्वस्थ रखने और खुद को तरोताजा करने के लिए शास्त्रीय संगीत की ओर रुख किया. ऐसे भी दिन थे जब मैं सुबह जल्दी उठ जाता और जोरदार तरीके से गायन का अभ्यास करना शुरू कर देता. मुझे कभी इस बात की चिंता नहीं होती थी कि मेरी आवाज़ अच्छी है या नहीं; इस अभ्यास ने मुझे मानसिक शांति प्रदान की.”

केरल में जन्में राधाकृष्णन कई कार्यक्रमों में कथकली का प्रदर्शन भी किया. वैसे कला के प्रति रुझान की नींव घर पर ही पड़ी थी. उन्होंने केरल नाटनम ​​में औपचारिक प्रशिक्षण प्रोफेसर थ्रिपुनिथुरा विजयभानु से लिया. फिर गुरु पल्लीपुरम गोपालन नायर, कलानिलयम राघवन और श्री टी.वी.ए वेरियर से कथकली नृत्य का प्रशिक्षण लिया.1995 में कर्नाटक संगीत सीखा.

2023 में ही उनके गायन कौशल को सोशल प्लेटफॉर्म पर सपने देखा और दाद दी. यह कार्यक्रम त्रिशूर के इरिंजालकुडा में कूडलमानिक्यम मंदिर में आयोजित किया गया था. पारंपरिक पोशाक पहने वैज्ञानिक ने कर्नाटक संगीत की अपनी कुशल गायन प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक होने के अलावा गायन के प्रति भी इतना समर्पण रखते हैं देख के लोग भौंचक्के रह गए.

शैक्षिक उपलब्धियों की बात करें तो उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज, त्रिवेंद्रम से बीएससी इंजीनियरिंग करने के बाद आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी की. फिर आईआईएम बैंगलोर से पीजीडीएम की डिग्री हासिल की. 1971 में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र से डॉ. राधाकृष्णन ने अपने करियर का आगाज किया. सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल प्रोजेक्ट की अहम जिम्मेदारी संभाली. 2009 से 2014 तक डॉ. राधाकृष्णन इसरो के अध्यक्ष रहे. उनकी अगुवाई में भारत ने चंद्रयान-1 मिशन, मार्स ऑर्बिटर मिशन और जीसैट श्रृंखला के उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया.

2014 में पद्म भूषण से सम्मानित वैज्ञानिक को हाल ही में भारत सरकार ने एनटीए की उस हाईलेवल कमिटी का अध्यक्ष बनाया जो परीक्षाओं को पारदर्शी और गड़बड़ी मुक्त बनाने में मदद करेगी. देश के युवाओं की निगाहें इनकी ओर हैं. विश्वास है कि डॉ राधाकृष्णन की समीक्षा रिपोर्ट उनकी परेशानियों को दूर करेगी और शायद ‘मॉम’ की तरह ही रिपोर्ट पहली बार में ही पेपर लीक के दंश से मुक्ति दिला दे!

केआर/