रांची, 28 मई . झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने राज्य में ग्राम स्वशासन संबंधित ‘पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) एक्ट’ अब तक लागू न किए जाने पर हेमंत सोरेन की सरकार को कटघरे में खड़ा किया है.
उन्होंने बुधवार को रांची स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि यह सरकार आदिवासियों को उनके स्वशासन के अधिकार से वंचित कर रही है. उन्होंने झामुमो-कांग्रेस की सरकार पर आदिवासी समाज की संस्कृति और परंपराओं पर हमला करने का भी आरोप लगाया. पेसा कानून की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि केंद्र की सरकार ने यह कानून 1996 में ही अधिसूचित किया था. इसके तहत सभी राज्यों को अपने अनुसूचित क्षेत्रों की परंपराओं और व्यवस्थाओं के अनुसार नियमावली तैयार कर इसे लागू करना था. ज्यादातर राज्यों ने इस पर अमल करते हुए ग्राम सभाओं को स्वशासन के अधिकार दे दिए हैं, लेकिन खुद को आदिवासियों का हितैषी बताने वाली झारखंड की मौजूदा सरकार नियमावली तैयार हो जाने के बावजूद इसे लागू नहीं होने दे रही.
उन्होंने कहा कि धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, पोटो हो, बुधु भगत, फूलो-झानो और बाबा तिलका मांझी सहित अनेक आदिवासी नायकों ने जिस ‘अबुआ राज’ (अपना राज्य, अपना शासन) के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया और कुर्बानी दी, उसी स्वशासन को आज राज्य का आदिवासी मुख्यमंत्री लागू नहीं होने दे रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड में पेसा की नियमावली का जो प्रारूप बना है, उसका प्रारूप कई साल पहले प्रकाशित हुआ. इस पर संस्थाओं और व्यक्तियों से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित की गई थीं. कई स्तरों पर व्यापक बहस और चर्चा के बाद विधि विभाग ने 22 मार्च, 2024 को ही सहमति दे दी. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत पेसा कानून को उचित ठहरा चुका है.
उन्होंने कहा कि आज झारखंड के आदिवासी इस सरकार से पूछते हैं कि राज्य में अनुसूचित क्षेत्र के तहत आने वाले 13 जिलों के 112 प्रखंडों में पेसा कानून के तहत ग्राम स्वराज की व्यवस्था कब लागू होगी? आखिर किसके दबाव में हेमंत सोरेन झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मुंडा, मानकी, ग्राम प्रधान की परंपरागत व्यवस्था लागू करने से कतरा रहे हैं? रघुवर दास ने कहा कि हेमंत सोरेन विदेशी धर्म मानने वालों के दबाव में हैं. पांचवीं अनुसूची के तहत पेसा कानून लागू होने से विदेशी धर्म मानने वालों के लिए आदिवासियों की परंपरागत स्वशासन व्यवस्था में घुसपैठ के मौके खत्म हो जाएंगे, इसलिए वे इसका विरोध करते हैं. हेमंत सोरेन की सरकार और गठबंधन में विदेशी धर्म मानने वाले कई मंत्री और नेता हैं और उनका दबाव इतना गहरा है कि आदिवासियों के धर्म, संस्कृति और परंपरा को संरक्षण देने वाला यह कानून धरातल पर नहीं उतरने दिया जा रहा.
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हेमंत सोरेन को डर है कि अगर उन्होंने विदेशी धर्म मानने वालों को नाराज किया तो उनकी सरकार गिर जाएगी. पेसा कानून लागू होने से लघु खनिज और बालू घाटों पर पंचायतों को पूर्ण अधिकार मिलेगा. ऐसे में राज्य में बालू, पत्थर, शराब, कोयला का अवैध सिंडिकेट चलाने वाले इसे लागू नहीं होने देना चाहते. सरकार ने भी उनके सामने घुटने टेक दिए हैं. यह सरना आदिवासी धर्मावलंबियों के साथ अन्याय है. प्रेस वार्ता में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सुदर्शन भगत भी उपस्थित रहे.
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एसएनसी/एएस