2008 में गांधी-भुट्टो मुलाकात पर फिर बवाल: चीन में हुई गुप्त बातचीत पर कांग्रेस घिरी, सवालों के घेरे में विदेशी रिश्ते

नई दिल्ली | 26 मई 2025 : 2008 के बीजिंग ओलंपिक के दौरान गांधी परिवार और भुट्टो परिवार के बीच हुई एक कथित गोपनीय मुलाकात की तस्वीर एक बार फिर सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सियासी तूफान मच गया है. इस तस्वीर ने कांग्रेस पार्टी को कठघरे में खड़ा कर दिया है—खासतौर पर मौजूदा भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान के संवेदनशील हालातों के बीच.

16 साल पुराना चित्र, आज के हालात में विस्फोटक

वायरल तस्वीर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी और बेटियों बख्तावर व आसिफा के साथ नजर आ रहे हैं. दोनों परिवार 2008 में बीजिंग ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में शामिल होने पहुंचे थे, जहां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के निमंत्रण पर यह प्राइवेट कंडोलेंस मीटिंग हुई थी.

पीपीपी नेता रहमान मलिक और जहांगीर बदर भी कथित रूप से उस बैठक में मौजूद थे. उस समय पीपीपी की ओर से दावा किया गया था कि यह मुलाकात पूरी तरह व्यक्तिगत और शोक संवेदना तक सीमित थी.

सवालों के घेरे में कांग्रेस-चीन MoU

हालांकि इस तस्वीर के दोबारा सामने आने के बाद सवालों का सिलसिला सिर्फ भावनात्मक पक्ष तक सीमित नहीं रहा. विवाद को और गहराता है कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच 2008 में हुए एक गोपनीय समझौते (MoU) का ज़िक्र, जो अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.

इस समझौते में राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर परामर्श और सहयोग की बात कही गई थी. दिलचस्प बात यह भी है कि उसी साल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) ने भी CPC के साथ ऐसा ही एक समझौता किया था.

बीजेपी और सोशल मीडिया पर उठे तीखे सवाल

बीजेपी नेताओं, राजनीतिक विश्लेषकों और आम नागरिकों ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस से तीखे सवाल पूछे हैं:

  • क्या 2008 में कांग्रेस और भुट्टो परिवार के बीच चीन की ज़मीन पर कोई बैकचैनल डिप्लोमेसी हो रही थी?

  • जब भारत-पाकिस्तान के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण थे, तब ऐसा निजी संवाद क्यों और किस उद्देश्य से हुआ?

  • कांग्रेस-CPC MoU की वास्तविक शर्तें क्या थीं?

बीजेपी ने कांग्रेस पर छाया कूटनीति (Shadow Diplomacy) का आरोप लगाते हुए कहा है कि राष्ट्रीय हितों को दरकिनार कर पार्टी ने गुप्त वार्ताएं कीं, जो कि पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों के खिलाफ है.

कांग्रेस की चुप्पी से बढ़ा संदेह

अब तक कांग्रेस पार्टी या गांधी परिवार की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. इस चुप्पी ने राजनीतिक गलियारों और मीडिया में संदेह को और गहरा किया है.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह मुलाकात सच में सिर्फ संवेदना प्रकट करने के लिए थी, तो इसके बारे में स्पष्ट विवरण सार्वजनिक किया जाना चाहिए था—खासतौर पर जब इसमें भारत, पाकिस्तान और चीन जैसे तीन प्रमुख देशों के राजनीतिक प्रतिनिधि शामिल हों.

प्रतीकात्मकता या परदे के पीछे का संदेश?

कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि यह सिर्फ दो राजनीतिक परिवारों के बीच मानवीय मुलाकात थी, जिसमें किसी भी प्रकार की राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. लेकिन कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसी मुलाकातें प्रतीकात्मक भले हों, लेकिन उनका राजनीतिक और रणनीतिक वजन बहुत होता है—खासतौर पर जब वह तीसरे देश की मेजबानी में हो.

चुनावी वर्ष में विपक्ष का हथियार?

2026 के आम चुनाव से पहले यह मामला विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार बन सकता है. बीजेपी और अन्य दल कांग्रेस की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पुराने मुद्दों को फिर से उछाल सकते हैं.

जब तक कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर पारदर्शिता के साथ प्रतिक्रिया नहीं देती, यह विवाद 2008 की मुलाकात को “गोपनीय साजिश” के तौर पर जनता के दिमाग में जिंदा रख सकता है.

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