रांची, 1 अगस्त . झारखंड-उत्तर प्रदेश सीमा के पास स्थित गढ़वा गांव टमाटर और बैंगन जैसी फसलों की ग्राफ्ट खेती में मिली बेहतर सफलता के लिए सुर्खियों में है. इस बदलाव के पीछे एक स्कूल के प्रधानाध्यापक से किसान बने हृदयनाथ चौबे का हाथ है.
सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक हृदयनाथ चौबे ने ग्राफ्ट खेती को व्यवहार में लाया और जिले के बंशीधर नगर प्रखंड में आधुनिक तरीके से ग्राफ्टेड टमाटर और बैंगन की खेती कर रहे हैं. उनकी खेती के अच्छे परिणाम मिले हैं और आज पूरे झारखंड के किसान उनका अनुसरण कर रहे हैं.
हृदयनाथ चौबे ने सेवानिवृत्ति के बाद खेती शुरू की और धान, गेहूं और मक्का जैसी फसलों की पारंपरिक खेती से कम आय प्राप्त करने वाले किसानों की परेशानियों को कम करने के लिए नए तरीके ईजाद करना चाहते थे.
उनके प्रयासों का उदाहरण देखकर, किसान अब नई तकनीकों का उपयोग करके आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं.
शुरुआत में, हृदयनाथ चौबे ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से 10 रुपए प्रति पौधे की दर से ग्राफ्टेड पौधे मंगवाए.
उनके अनुसार, ग्राफ्टेड पौधे सामान्य पौधों की तुलना में दोगुना उत्पादन देते हैं और रोगों के प्रति भी सहनशील होते हैं, जिससे किसानों को अधिक लाभ होता है.
इस पौधे की सबसे खास बात यह है कि इसे किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है. अगर इसे ऑफ-सीजन में लगाया जाए, तो किसानों को इसके अच्छे दाम मिलते हैं, जिससे मुनाफा भी बढ़ता है.
उन्होंने को बताया कि धान और गेहूं की खेती से किसान प्रति एकड़ 30,000 रुपए से ज्यादा नहीं बचा सकता, जबकि आधुनिक तरीकों से सब्जी की खेती करके किसान प्रति एकड़ 2-3 लाख रुपए तक कमा सकता है.
अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ जमीन पर ग्राफ्टेड टमाटर और बैंगन लगाने में लगभग दो से तीन लाख रुपए खर्च हुए.
जिला कृषि अधिकारी शिवशंकर प्रसाद ने बताया कि यह तकनीक छत्तीसगढ़ में काफी लोकप्रिय है और टमाटर, बैगन, मिर्च और शिमला मिर्च की खेती से अच्छा-खासा मुनाफा हुआ है.
उन्होंने बताया, “ग्राफ्टेड बैंगन और टमाटर जंगली बैंगन पर ग्राफ्ट किए जाते हैं. चूंकि जड़ जंगली बैंगन की होती है, इसलिए ग्राफ्टेड पौधों को जड़ संबंधी रोग नहीं लगते और पौधे की वृद्धि भी सामान्य पौधे की तुलना में कहीं अधिक मजबूत होती है. साथ ही, उत्पादन भी दोगुना होता है और ग्राफ्टेड पौधा किसी भी प्रकार के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है.”
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एससीएच/जीकेटी