नई दिल्ली, 9 अक्टूबर . ‘हिंदुस्तान हमारा है, प्राणों से भी प्यारा है. इसकी रक्षा कौन करे? सेंत-मेंत में कौन मरे? बैठो हाथ पै हाथ धरे! गिरने दो जापानी बम! सत्यं शिवं सुंदरम्’, ये कविता लिखी थी हिंदी के मशहूर आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा ने. जिन्होंने अपनी लेखनी के जरिए भाषा, साहित्य और समाज को एक धागे में पिरोकर उसका मूल्यांकन करने का काम किया.
आलोचक, चिंतक, निबंधकार और कवि रहे रामविलास शर्मा का जन्म 10 अक्टूबर 1912 को यूपी के उन्नाव जिले के ऊंचगांव सानी में हुआ था. पेशे से वह अंग्रेजी के प्रोफेसर थे, लेकिन उनके साहित्यिक जीवन में अहम भूमिका निभाई सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने.
साल 1934 में उन्होंने अपना पहला आलोचनात्मक लेख ‘निरालाजी की कविता’ लिखा, जो मशहूर पत्रिका ‘चांद’ में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई और रचनाएं लिखी, जिनमें ‘चार दिन’ (उपन्यास), ‘तार सप्तक’ में संकलित कविताएं, ‘महाराजा कठपुतली सिंह’, ‘पाप के पुजारी’ (नाटक) भी लिखे. यहीं नहीं, उन्होंने साहित्यिक आलोचना से संबंधित ‘प्रेमचन्द’, भारतेन्दु युग’, ‘परंपरा’, ‘निराला’, ‘प्रेमचन्द और उनका युग’ जैसी रचनाएं लिखीं.
रामविलास शर्मा की आलोचना में केवल साहित्य ही नहीं होता बल्कि वे समाज, अर्थ, राजनीति, इतिहास को एक साथ लेकर साहित्य का मूल्यांकन भी करते थे. वह अपनी कविता ‘दाराशिकोह’ में लिखते हैं, ‘दिल्ली में उमड़ आया क्षुब्ध जन-पारावार, राहुग्रस्त चंद्र को भी देख कर उठा ज्वार, दीन मदहीन एक हाथी पर राज्यहीन, शाहंशाह भारत का दाराशिकोह था सवार.‘
हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा को कई सम्मानों से भी नवाजा गया. उन्हें साल 1970 ‘निराला की साहित्य साधना’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके बाद साल 1988 में शलाका सम्मान, 1990 में भारत भारती पुरस्कार, 1991 में ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी’ के लिए व्यास सम्मान, 1999 में ही साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सम्मान से नवाजा गया. हालांकि, उन्होंने इन पुरस्कारों के साथ मिलनी वाली राशि को कभी नहीं लिया बल्कि उन्होंने इन पैसों को हिंदी के विकास में लगाने को कहा था.
‘गांधी, अंबेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएं’, ‘भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश’, ‘निराला की साहित्य साधना’ समेत लगभग 100 महत्त्वपूर्ण किताब लिखने वाले रामविलास शर्मा का 30 मई 2000 को निधन हो गया.
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