राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू : संघर्ष, सेवा और सादगी की मिसाल

New Delhi, 19 जून . देश की प्रथम आदिवासी महिला President द्रौपदी मुर्मू 20 जून को अपना जन्मदिन मनाएंगी. यह दिन न केवल उनके जीवन का विशेष दिन है, बल्कि यह India के लोकतंत्र की व्यापकता, समावेशिता और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक भी बन चुका है. एक साधारण आदिवासी परिवार से निकलकर President भवन तक पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू की जीवन यात्रा संघर्ष, सेवा और संकल्प की मिसाल है.

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को Odisha के मयूरभंज जिले के एक छोटे से गांव उपरबेड़ा में हुआ था. वह संथाल जनजाति से संबंध रखती हैं. उनके पिता बिरंची नारायण टुडू गांव के मुखिया थे और पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े हुए थे. बचपन में ही उन्होंने यह देख लिया था कि आदिवासी समाज किन सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझता है.

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों से प्राप्त की और फिर भुवनेश्वर के रामदेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की. शिक्षा के प्रति उनकी लगन ही थी जिसने उन्हें एक सशक्त मंच प्रदान किया.

द्रौपदी मुर्मू ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षिका के रूप में की. उन्होंने Odisha Government के अंतर्गत श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर, रायरंगपुर में मानद शिक्षक के रूप में कार्य किया. बाद में वह Odisha राज्य के सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर असिस्टेंट के पद पर भी रहीं. यह दौर उनके जीवन का संघर्षपूर्ण चरण था, जिसमें वे एक ओर घर-परिवार और दूसरी ओर सामाजिक दायित्वों को बखूबी निभा रही थीं.

द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में राजनीति में कदम रखा. वह भाजपा से रायरंगपुर नगर पंचायत से पार्षद बनीं. यहां से उनके Political जीवन की शुरुआत हुई. अपनी कार्यशैली, ईमानदारी और जनसेवा के जज्बे के कारण उन्होंने जल्द ही पार्टी के भीतर अपनी पहचान बना ली.

वर्ष 2000 में जब Odisha में भाजपा और बीजू जनता दल (बीजद) की गठबंधन Government बनी, तो उन्हें राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया. उन्होंने वाणिज्य और परिवहन विभाग और बाद में मत्स्य पालन और पशुपालन विभाग में मंत्री के रूप में सेवा दी. इस दौरान उन्होंने आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए कई योजनाएं चलाईं.

द्रौपदी मुर्मू का निजी जीवन अत्यंत संघर्षों से भरा रहा. उन्होंने अपने पति श्याम चरण मुर्मू को एक गंभीर बीमारी के चलते खो दिया. इसके बाद उन्होंने अपने दो पुत्रों को भी कम उम्र में खो दिया, जो किसी भी मां के लिए अत्यंत पीड़ादायक होता है. इन त्रासदियों ने उन्हें तोड़ने की बजाय और अधिक मजबूत बनाया. उन्होंने जीवन के हर दर्द को सहते हुए समाजसेवा के मार्ग को नहीं छोड़ा. यही वह मानसिक दृढ़ता थी जिसने उन्हें बार-बार उबरने की शक्ति दी.

द्रौपदी मुर्मू को 2015 में Jharkhand की पहली महिला Governor नियुक्त किया गया. इसके साथ ही वह Jharkhand की पहली आदिवासी Governor भी बनीं. उन्होंने छह साल से अधिक का कार्यकाल पूरा किया, जो किसी भी Governor के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.

Governor रहते हुए उन्होंने संविधान की मर्यादा का पालन करते हुए कई बार सशक्त और स्वतंत्र निर्णय लिए. विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय मुद्दों पर उन्होंने दृढ़ता से अपनी बात रखी और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के अधिकारों की रक्षा की.

वर्ष 2022 में जब President चुनाव की बारी आई, तो भारतीय जनता पार्टी और एनडीए गठबंधन ने द्रौपदी मुर्मू को President पद का उम्मीदवार बनाया. यह फैसला ऐतिहासिक था, क्योंकि यह पहली बार था जब किसी आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए नामित किया गया.

विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा उम्मीदवार थे, लेकिन द्रौपदी मुर्मू ने भारी मतों से जीत हासिल की. 25 जुलाई 2022 को उन्होंने India की 15वीं President के रूप में शपथ ली, और इसके साथ ही वह India की पहली आदिवासी महिला President बनीं.

President बनने के बाद भी द्रौपदी मुर्मू की सादगी, सहजता और संवेदनशीलता में कोई कमी नहीं आई. वह लगातार समाज के वंचित वर्गों, विशेषकर आदिवासी समुदायों, महिलाओं और बच्चों के हितों की बात करती रही हैं. उन्होंने अपने संबोधनों में बार-बार प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, स्थानीय भाषाओं की महत्ता, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही है.

डीएससी/एकेजे