प्रयागराज, 24 सितंबर . शारदीय नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की उपासना और शक्ति की आराधना का सबसे बड़ा अवसर माना जाता है. नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. मां का यह स्वरूप शांति, सौभाग्य और कल्याण का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार बढ़ा तो मां भगवती ने चंद्रघंटा का रूप धारण कर उनका संहार किया.
मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र स्थित है, जिसके कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. उनका शरीर स्वर्ण के समान तेजस्वी बताया गया है. उनकी दस भुजाओं में विविध अस्त्र-शस्त्र हैं और उनका वाहन सिंह है. मां का यह स्वरूप शक्ति, साहस और पराक्रम का प्रतीक है.
श्रद्धालु मानते हैं कि मां चंद्रघंटा की आराधना से भय, संकट और बाधाओं का नाश होता है तथा जीवन में सुख-समृद्धि आती है.
India में वैसे तो कई जगहों पर मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है, लेकिन कुछ मंदिरों का विशेष महत्व है.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर के चौक क्षेत्र में स्थित मां चंद्रघंटा का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर भक्तों के बीच विशेष आस्था का केंद्र है. इस मंदिर को मां क्षेमा माई का मंदिर भी कहा जाता है.
पुराणों और जनश्रुतियों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है. सबसे खास बात यह है कि यहां मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों के दर्शन एक ही स्थान पर होते हैं. नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
वाराणसी में स्थित चंद्रघंटा देवी मंदिर भी भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है. नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखने को मिलती हैं. इस मंदिर की विशेष परंपरा यह है कि यहां मां को दूध से बनी विशेष मिठाई का भोग लगाया जाता है. यह प्रसाद मंदिर परिसर में प्रतिदिन प्रातः तैयार किया जाता है और भक्तों को वितरित किया जाता है.
इसके अलावा, दिल्ली के करोल बाग क्षेत्र में स्थित झंडेवालान मंदिर भी मां चंद्रघंटा की आराधना का प्रमुख केंद्र है. यहां देवी झंडेवाली की भव्य मूर्ति के साथ-साथ मां चंद्रघंटा की प्रतिमा भी स्थापित है.
नवरात्रि के समय यह मंदिर विशेष रूप से फूलों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है. खासकर तीसरे दिन, मां चंद्रघंटा के दर्शन के लिए यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
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पीआईएम/एबीएम