स्मृति शेष : ‘आठवां सुर’ सुब्बुलक्ष्मी की आवाज के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी रहे कायल

नई दिल्ली, 15 सितंबर . भारत रत्न से सम्मानित एमएस. सुब्बुलक्ष्मी ऐसी रोशनी हैं, जिनसे भारतीय संगीत जगमग है. उन्हें स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने ‘तपस्विनी’और उस्ताद बड़े गुलाम अली खां ने ‘सुस्वरलक्ष्मी’ की उपमा दी थी. किशोरी अमोनकर सुब्बुलक्ष्मी को ‘आठवां सुर’ कहती थीं. यह दर्जा संगीत के सात सुरों से भी ऊंचा है. ऐसी उपलब्धि हासिल करना सुब्बुलक्ष्मी के लिए ही संभव था.

तमिलनाडु के मदुरै शहर में 16 सितंबर 1916 को सुब्बुलक्ष्मी का जन्म हुआ. उन्होंने पांच साल की उम्र से ही संगीत की शिक्षा ग्रहण करनी शुरू कर दी और अभ्यास करने लगीं. सुब्बुलक्ष्मी के बचपन का नाम ‘कुंजाम्मा’ था. उनकी नानी अक्काम्मल वायलिन वादिका थी. सुब्बुलक्ष्मी बचपन में ही कर्नाटक संगीत से जुड़ गई थी. उनका पहला एल्बम दस साल की उम्र में आया था.

गायन के कारण सुब्बुलक्ष्मी की लोकप्रियता काफी रही. उनकी भक्ति संगीत की प्रस्तुति सुनकर लोग भावविभोर होकर सुर-ताल के अद्भुत समागम में गोते लगाने को मजबूर हो जाते थे. जब सुब्बुलक्ष्मी ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए’ गाती थीं तो मानो साक्षात माता सरस्वती उनकी कंठ पर विराजमान हो जाती थी. उन्होंने मीरा के कई भजन गाए. उन्होंने तमिल फिल्म ‘मीरा’ में भी काम किया.

सुब्बुलक्ष्मी ने संयुक्त राष्ट्र में भी गायन पेश किया था. इस कार्यक्रम की दुनिया भर में तारीफ हुई और हर कोई उनकी आवाज़ का प्रशंसक बन गया. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था, “वह अपनी आवाज़ से ऐसा समां बांधती हैं कि पश्चिमी देशों के श्रोता भी उन्हें ध्यान से सुनते हैं. भले ही श्रोता शब्दों को ना समझें, उनकी आवाज़ और प्रस्तुति किसी को भी खुद से जोड़ने में सफल होती है.”

उन्होंने मद्रास संगीत अकादमी में पढ़ाई के दौरान 17 साल की उम्र में भव्य कार्यक्रम में प्रस्तुति दी और हर शख्स उनकी तारीफ करने से खुद को नहीं रोक सका. उन्होंने तमिल, मलयालम, तेलुगू, हिंदी, संस्कृत, बंगाली और गुजराती भाषा में गीत गाए. उन्होंने मीरा के भजनों को अपने सुरों में पिरोया. उनकी भाषा समझ में ना आए, उनकी आवाज़ आज भी गूंजती है.

सुब्बुलक्ष्मी के देश और दुनिया में असंख्यक प्रशंसक हैं. इनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी शामिल रहे. महात्मा गांधी ने तो यहां तक कहा था, “मैं किसी और का गायन सुनने की बजाए, सुब्बुलक्ष्मी की आवाज़ को सुनना पसंद करूंगा.” सुब्बुलक्ष्मी को ‘नाइटेंगेल ऑफ इंडिया’ भी कहा गया, जो उनकी आवाज़ के लिए पूरी तरह उचित था.

सुब्बुलक्ष्मी ने साल 1940 में स्वतंत्रता सेनानी सदाशिवम से शादी की. सुब्बुलक्ष्मी को दुनिया की सर्वोत्तम गायिका बनाने में सदाशिवम का विशेष योगदान और मार्गदर्शन रहा. सुब्बुलक्ष्मी ने कई अवसर पर इसे स्वीकार भी किया. उनका कहना था कि अगर मुझे अपने पति की हमेशा मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिली होती तो मेरे लिए इस मुकाम तक पहुंचना संभव नहीं था.

एमएस. सुब्बुलक्ष्मी ने अपने करियर में कई मंचों पर प्रस्तुति दी. कई पुरस्कार प्राप्त किए और ना जाने कितने ही युवाओं को प्रेरित किया. उन्हें भारत रत्न समेत कई सम्मान से नवाजा गया. उन्हें कई विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधि से सम्मानित किया था. उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया था. उन्होंने 11 दिसंबर 2004 को दुनिया को अलविदा कह दिया.

एबीएम/एएस