महोबा, 1 अक्टूबर . उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के जैतपुर में स्थित श्री गांधी आश्रम उत्पत्ति केंद्र में आज भी महात्मा गांधी के उस सपने को सहेजा जा रहा है, जिसे उन्होंने सन 1920 में इस केंद्र की स्थापना के समय देखा था. यह केंद्र केवल खादी का उत्पादन स्थल नहीं, बल्कि कुटीर उद्योग के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन की गांधीवादी सोच का जीता-जागता प्रमाण है.
जैतपुर के इस ऐतिहासिक केंद्र की स्थापना के लिए स्वयं महात्मा गांधी, आचार्य जेबी कृपलानी के साथ यहां आए थे. उनका उद्देश्य यहां की गरीब जनता को चरखे के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना था, ताकि वे अपने कपड़े स्वयं बना सकें और यह उनकी रोजी-रोटी का साधन भी बन सके.
केंद्र की स्थापना के बाद जैतपुर के लगभग 200 बुनकर परिवारों ने सूत कताई और कपड़ा बनाने को अपना लिया था. उस समय हर घर में चरखा आ गया था और सूत कातना एक धर्म जैसा बन गया था. देश की आजादी के दशकों बाद भी यहां के बुनकर परिवार चरखा चलाकर खादी का कपड़ा तैयार कर रहे हैं. बुनकर अपने घरों का काम खत्म कर चरखा चलाते हैं और सूत कातकर आमदनी करते हैं, जिससे उनका खर्च चलता है. इस समय इस केंद्र में लगभग 15 से 20 चरखे चल रहे हैं.
केंद्र के व्यवस्थापक धनप्रसाद विश्कर्मा ने से बात करते हुए कहा कि इन चरखों को मुख्य रूप से महिलाएं चलाती हैं, जो घर के काम से खाली होकर श्री गांधी आश्रम उत्पत्ति केंद्र में आती हैं और सूत कातकर पैसे कमाती हैं. पहले ऊन लाया जाता है, जिससे चरखे से धागा बनाया जाता है और फिर बुनकरों को दिया जाता है. बुनकर हथकरघा से कपड़ा तैयार करते हैं. अंत में, कपड़े की धुलाई करके उन्हें बिक्री के लिए दुकानों पर भेजा जाता है. इस प्रकार, यह केंद्र आज भी जैतपुर के कई परिवारों, विशेषकर महिलाओं, की आय का एक महत्वपूर्ण ज़रिया बना हुआ है, जो गांधी के स्वदेशी और स्वावलंबन के विचार को साकार कर रहा है.
बुनकरों ने से बात करते हुए बताया कि हम चरखा चलाकर सूत काटते है इससे जो पैसा मिलता है उससे हम लोग अपने घर का खर्च चलाते है, 103 साल बाद भी यहां चरखा से सूत काटा जाता है.
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एसएके/डीएससी