ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा, अमेरिका-भारत साझेदारी में अभी सर्वश्रेष्ठ आना बाकी

सोनीपत, 10 अप्रैल . जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, जिंदल इंडिया इंस्टीट्यूट और जिंदल ग्लोबल सेंटर फॉर जी20 स्टडीज ने संयुक्त रूप से सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के परिसर में भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक एम. गार्सेटी की मेजबानी की.

राजदूत एरिक एम. गार्सेटी ने 200 से ज्यादा छात्रों और फैकल्टी सदस्यों के सामने ‘सदी का सबसे महत्वपूर्ण संबंध : भारत-अमेरिकी संबंध’ थीम पर लेक्चर (भाषण) दिया.

अमेरिका-भारत संबंध गहरा और व्यापक होता जा रहा है. पूरी दुनिया का इस ओर ध्यान आकर्षित हुआ है. ऐसे में इस लेक्चर का गहरा महत्व है. भारत-अमेरिकी संबंधों पर राजदूत गार्सेटी का दृष्टिकोण कूटनीतिक रूढ़िवादिता से परे है और साझा आकांक्षाओं और ‘4 पी’- पीस, प्रोस्पेरिटी, प्लेनेट तथा पीपल पर आधारित है.

राजदूत गार्सेटी ने बचपन से भारत की अपनी यात्राओं के दौरान अनुभव किए गए पलों की व्यक्तिगत यादें भी बताईं. उन्होंने कहा कि उनका भारत के साथ दशकों से गहरा संबंध रहा है. भारत ने मेरी आत्मा को कभी नहीं छोड़ा.

राजदूत ने जिक्र किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन्हें बताया था कि भारत ‘दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश है’. नई दिल्ली के साथ वाशिंगटन के संबंध 21वीं सदी में विश्व व्यवस्था को आकार देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं.

राजदूत गार्सेटी ने अमेरिका और भारत के बीच संबंधों को दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच ‘एक योगात्मक संबंध नहीं, बल्कि एक बहु गुणात्मक संबंध’ बताया, जो शिक्षा, व्यापार और हरित ऊर्जा की कल्पना के संयुक्त उद्यम में एक मजबूत आदान-प्रदान द्वारा रेखांकित किया गया है.

इसके बाद हुए इंटरैक्टिव सत्र के दौरान, दर्शकों ने राजदूत से भारत में घरेलू राजनीति, अमेरिका में नस्लीय भेदभाव, इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता, अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका और अधिक देशों को शामिल करने के लिए क्वाड जैसे बहुपक्षीय समूहों का विस्तार करने की क्षमता से संबंधित विविध विषयों पर बातचीत की.

भारत में आंतरिक घटनाक्रम के बारे में अमेरिका द्वारा की गई टिप्पणियों से जुड़े विवादों पर राजदूत गार्सेटी ने कहा, “अमेरिका एक यूनिक लोकतंत्र है जहां सरकार की हर शाखा, समाचार मीडिया और नागरिक समाज के विभिन्न देशों के बारे में अपने विचार और राय रखते हैं. खुली अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था के हिस्से के रूप में ये राय अक्सर सार्वजनिक रूप से प्रसारित की जाती हैं. साथ ही, अमेरिका इस उदार लोकाचार के तहत अन्य देशों की आलोचना सहने के लिए भी तैयार है. राजदूत गार्सेटी ने लगभग एक अरब मतदाताओं के साथ आगामी लोकसभा आयोजित करने के लिए भारत की प्रशंसा की और कहा कि अमेरिका को अपनी चुनावी प्रथाओं और प्रक्रियाओं में सुधार करने के लिए भारत से कुछ सीखने की जरूरत है.”

अरुणाचल प्रदेश के भारत का अभिन्न अंग होने के सवाल पर, राजदूत ने स्पष्ट कहा कि चीन को उन स्थानों का नाम बदलने की कोई जरूरत नहीं है जो भारत के संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा हैं. अमेरिका भारत की संप्रभुता का पूरा समर्थन करता है और आक्रामक सत्तावादी प्रतिद्वंद्वी देशों को रोकने के लिए दोनों भागीदारों के बीच रक्षा सहयोग अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच रहा है.

उन्होंने कहा कि दो लोकतंत्रों के रूप में, अमेरिका और भारत ने चीन जैसे तानाशाही शासन से उत्पन्न खतरे के बारे में एक जैसा सोचा और महसूस किया एवं मूल्यों का आगे बढ़ना वाशिंगटन तथा नई दिल्ली को करीब लाने वाला प्रमुख फैक्टर था.

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति सी. राज कुमार ने कहा, “हम अमेरिकी यूनिवर्सिटी के भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के खुले और उदार समर्थन तथा क्षमता निर्माण के लिए उनके कर्ज के आभारी हैं. जिस तरह से अमेरिकी यूनिवर्सिटीज ने दुनिया में उच्चतम मानक हासिल किए हैं और मानवता के सामने आने वाली सबसे कठिन समस्याओं का समाधान किया है, वह भारतीय शिक्षा जगत के लिए सीखने और बराबरी करने लायक है. अमेरिका-भारत साझेदारी में शिक्षा एक परिवर्तनकारी फैक्टर बनने जा रही है.”

कार्यक्रम में मौजूद जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के डीन डॉ. श्रीराम चौलिया ने राजदूत गार्सेटी के विचार का हवाला दिया कि अमेरिका-भारत साझेदारी वर्तमान में केवल ‘पहाड़ के बीच में’ कोई बिंदु तक पहुंच गई है और आगे आने वाली असीमित संभावनाओं का जिक्र किया.

श्रीराम चौलिया ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के इस बयान को दोहराया कि आपने ‘अभी तक अमेरिका-भारत की दोस्ती में कुछ भी नहीं देखा है’ और इस तथ्य की ओर इशारा किया कि दोनों देश संयुक्त रूप से शत्रुओं का मुकाबला कर रहे हैं और इंडो-पैसिफिक का पुनर्निर्माण उस तरह से कर रहे हैं जैसे केवल सहयोगी करते हैं.

जबकि अमेरिका और भारत केवल कहने के लिए सहयोगी नहीं हैं, द्विपक्षीय सहयोग के कई क्षेत्र वास्तव में गठबंधन जैसी दोस्ती की दिशा में जा रहे हैं.

श्रीराम चौलिया कहा कि रिश्ते के बुनियादी सिद्धांत इतने मजबूत हैं कि मूल्यांकन में ऐसी असहमति और मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं पेश किया जाना चाहिए.

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