यूपी में चुनाव इस बार असामान्य रूप से शांत है

लखनऊ, 7 अप्रैल . सबसे ज्यादा संख्या में सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में इस बार लाउडस्पीकर पर ‘जीतेगा भाई, जीतेगा’ की आवाज जो पहले खूब सुनाई देती थी, इस बार आश्चर्यजनक रूप से गायब है.

जमीन पर कोई रंग नजर नहीं आ रहा है और पोस्टर व होर्डिंग्स भी कम ही नजर आ रहे हैं.

यहां तक कि मोबाइल फोन पर संदेश भी मिलना मुश्किल है. जो शोर हो रहा है वो केवल टेलीविजन पर ही हो रहा है जहां कुछ न कुछ डिबेट हमेशा चलती रहती है.

उत्तर प्रदेश में इस बार चुनाव प्रचार असामान्य रूप से शांत है, दरअसल चुनाव जैसा कुछ लग ही नहीं रहा है.

सही मायनों में देश के सबसे बड़े राज्य में अभियान अभी शुरू नहीं हुआ है.

भाजपा जहां पूरे देश पर फोकस कर रही है, और पूरी ताकत से आगे बढ़ रही है, विपक्षी दलों ने उम्मीदवारों तक की घोषणा नहीं की है.

पहले नारे खूब लगाए जाते थे, लेकिन इस बार कहीं दिख ही नहीं रहे हैं.

सेंट्रल यूपी के एक भाजपा उम्मीदवार ने कहा, ”भाजपा का एक ही नारा है ‘अबकी बार 400 पार’ और हर उम्मीदवार इस पर भरोसा कर रहा है. किसी भी उम्मीदवार ने अलग से कोई नारा नहीं गढ़ा है, क्योंकि वह मोदी लहर पर सवार होना चाहता है. नारा आकर्षक है और पहले ही लोकप्रिय हो चुका है.”

कांग्रेस का नारा ‘अब होगा न्याय’ लोगों का ध्यान खींचने में विफल रहा है. युवा चुनाव विश्लेषक रवीश माथुर ने कहा, ”इससे बिल्कुल पता नहीं चलता कि कांग्रेस क्या कहना चाहती है. नारा छोटा और आकर्षक होना चाहिए – जो कुछ ही शब्दों में सब कुछ कह दे.”

इस सीजन के लिए सपा और बसपा को अभी तक अपनी पसंद के नारे नहीं मिल पाए हैं.

प्रचार की शैली में बदलाव से झंडे और पोस्टर भी खत्म हो गए हैं.

एक उम्मीदवार ने कहा, “लोग अब पोस्टरों और झंडों से प्रभावित नहीं होते. उनमें से अधिकांश ने पहले ही अपना मन बना लिया है. ऐसी चीजों पर अपना पैसा बर्बाद करना बेकार है. पहले लोग उम्मीदवार चुनते थे लेकिन अब लोग पार्टियां चुनते हैं.”

ज्यादातर उम्मीदवार प्रचार के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी काफी सतर्क तरीके से कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, चुनाव की घोषणा से बहुत पहले, लखनऊ से सपा उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा ने मतदाताओं को फोन के माध्यम से अपना ऑडियो संदेश दिया. हालांकि, उन्होंने जल्द ही इसे छोड़ दिया.

बसपा के एक उम्मीदवार ने बताया: “सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार है और इसका इस्तेमाल आपके खिलाफ भी जा सकता है. मतदाताओं से सीधा संबंध स्थापित करना और अपनी बात पहुंचाना ज्यादा सुरक्षित और बेहतर है.”

दिलचस्प बात यह है कि लगभग सभी उम्मीदवार साक्षात्कार देने और अपने प्रचार अभियान में मीडियाकर्मियों को साथ ले जाने से भी कतरा रहे हैं. उनका दावा है कि उनकी पार्टी के नेताओं ने उनसे मीडिया से दूरी बना कर रखने को कहा है.

इलाहाबाद के एक सेवानिवृत्त राजनीतिक वैज्ञानिक एसएन दीक्षित ने कहा कि जब उम्मीदवारों और लोगों को चुनाव के नतीजे पहले से पता होते हैं तो अपने आप चुप्पी छा जाती है.

उन्होंने कहा, “लगभग हर कोई जानता है कि विजेता कौन है. इसलिए कोई शोर नहीं मचा रहा. संभावित विजेता चुप हैं क्योंकि वे परिणाम को लेकर आश्वस्त हैं. विपक्ष भी अनावश्यक प्रयास नहीं चाहता क्योंकि वे भी परिणाम जानते हैं.”

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