झारखंड में 48 नगर निगमों और नगर निकायों के होंगे चुनाव, आयोग ने हाईकोर्ट को सौंपी टाइमलाइन

रांची, 24 नवंबर . Jharkhand के सभी 48 नगर निगमों और नगर निकायों के लंबित चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है. इसके लिए राज्य Government ने अपनी ओर से सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं. इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने Monday को हाईकोर्ट को चुनाव कराने की प्रस्तावित टाइमलाइन पर सीलबंद रिपोर्ट सौंप दी.

आयोग की ओर से कोर्ट को बताया गया है कि चुनाव की तैयारी में कम से कम आठ सप्ताह का समय लगेगा, इसके बाद 45 दिनों के भीतर चुनाव की अधिसूचना जारी कर निर्वाचन प्रक्रिया पूरी की जा सकती है. इस पर हाईकोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि वह प्रस्तावित टाइमलाइन के अनुसार चुनावी प्रक्रिया पूरी कर ले. हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 मार्च निर्धारित की है.

नगर निगमों और नगर निकायों के चुनाव लंबे समय से नहीं कराए जाने को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत को बताया कि चुनाव में ओबीसी आरक्षण के लिए सूची, जनसंख्या के आंकड़े सहित सभी जरूरी दस्तावेज और डाटा राज्य निर्वाचन आयोग को उपलब्ध करा दिए गए हैं. अब Government की ओर से आयोग को किसी अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता नहीं है. राज्य निर्वाचन आयोग ने भी स्वीकार किया कि Government ने नगर निकाय चुनाव से संबंधित सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी हैं. अब आयोग को अधिसूचना जारी करने और आगे की चुनावी प्रक्रिया शुरू करने की कार्रवाई करनी है.

साथ ही आयोग को निर्देश दिया है कि तय समयसीमा के भीतर राज्य में निकाय चुनाव संपन्न कराने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता विनोद कुमार सिंह ने पक्ष रखा, जबकि राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया पेश हुए.

बता दें कि प्रार्थी रोशनी खलखो और रीना कुमारी ने अवमानना याचिका दायर कर नगर निगम व नगर निकाय चुनाव कराने संबंधी अदालत के पूर्व आदेश के अनुपालन की मांग की है. Jharkhand के सभी नगर निकायों का कार्यकाल अप्रैल 2023 में समाप्त हो चुका है. उस समय 27 अप्रैल 2023 तक नए चुनाव कराए जाने थे, लेकिन ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए शुरू की गई ‘ट्रिपल टेस्ट’ प्रक्रिया पूरी न होने के कारण चुनाव टलते रहे. अप्रैल 2023 के बाद से राज्य के सभी नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद और नगर पंचायतों का संचालन Governmentी प्रशासकों के हाथों में है और पिछले सवा दो वर्षों से निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका समाप्त हो गई है.

एसएनसी/डीकेपी