गाजा में रमजान : संघर्ष विराम वार्ता ठप्प होने से गाजावासियों की बढ़ी चिंता, कहीं फिर से शुरू न हो जाए जंग

गाजा, 3 मार्च . गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों ने इस साल रमजान का स्वागत भारी मन से किया. तबाह हो चुके शहर के निवासियों को युद्ध विराम समझौते कहीं टूट न जाए और इजरायली हमले फिर से शुरू न हो जाए.

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, फिलीस्तीन और इजरायल के बीच संघर्ष विराम का पहला चरण शनिवार को समाप्त हो गया. दूसरे चरण का कोई संकेत न मिलने के कारण गाजा के लोग अब बहुत चिंता में हैं और उन्हें डर है कि युद्ध कभी भी फिर से शुरू हो सकता है.

गाजा की सड़कों पर पहले लोगों का आवागमन रहता था. लेकिन, अब यह खंडहर में बदल चुकी हैं. टूटे हुए घरों का मलबा तबाही की याद दिलाता है और हवा में बारूद, मौत और सड़ी गली चीजों की बदबू फैली हुई है.

दक्षिणी गाजा के खान यूनिस की ओम मोहम्मद अल-नज्जर कहती हैं, “हर दिन जब गोलाबारी नहीं होती, तो थोड़ा आराम मिलता है. लेकिन हम हमेशा इस डर में जीते हैं कि कहीं हमले फिर से न शुरू हो जाएं.” हाल ही में हुई बमबारी में उनका घर भी नष्ट हो गया. उन्होंने कहा, “हमने बहुत दुख सहा है. रमजान शांति का समय होना चाहिए, लेकिन यहां कोई शांति नहीं है.”

गाजा सिटी के 45 वर्षीय मोहम्मद अल-दहदौह, जो चार बच्चों के पिता हैं, बताते हैं कि उनका परिवार पहले खुशी-खुशी अपने घर को लालटेन और चमकीले रंगों से सजाता था. रसोई में पारंपरिक मध्य पूर्वी व्यंजन, मकलूबा और कतायेफ़ की खुशबू फैल जाती थी और पूरे घर में हंसी की आवाजें गूंजती थीं.

अल-दहदौह ने बताया, “रमजान का मतलब होता था इफ्तार की मेज पर परिवार का एक साथ होना, बच्चों की हंसी की आवाज़ और घर में खाने की खुशबू का होना.” अब, न घर है, न मेज. हम एक छोटे से तंबू में रह रहे हैं और हमारे पास जो खाना है, वह मुश्किल से पर्याप्त है.”

राफा शहर की एक फिलिस्तीनी महिला, तसाहिल नासर ने बताया, “पवित्र रमजान का महीना गाजा में अपनी खुशियां खो चुका है. यहां कोई लालटेन नहीं हैं, कोई सजावट नहीं हैं, और न ही हलचल भरे बाजार हैं. इसके बजाय, यहां मौत का सन्नाटा है और हमेशा विनाश की गंध फैलती रहती है.”

नासर इजरायली हवाई हमले में अपने पति, भाइयों और माता-पिता को खो चुकी है. उन्होंने कहा, “हमारे प्रियजन चले गए हैं और अब हमारे पास आगे बढ़ने की ताकत नहीं है. दर्द लगातार बना हुआ है, अब यह और भी बढ़ गया है, क्योंकि पवित्र रमजान का महीना उस परिवार की यादें लेकर आता है, जिसे मैंने खो दिया है.”

कुछ गाजावासी दर्द में टूटना नहीं चाहते. मध्य गाजा के डेर अल-बलाह के 35 वर्षीय अर्कान रादी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपने तंबू में रमजान की कुछ सजावट की हैं.

रेडी ने कहा, “ये एक संदेश हैं कि हम अभी भी यहां हैं. अभी भी जीवन को थामे हुए हैं, चाहे हालात कितने भी बुरे क्यों न हों. यह कोई समाधान नहीं है, लेकिन मैं अपने बच्चों के लिए कुछ उम्मीद और खुशी लाना चाहती हूं.”

एसएचके/एमके