पीएम मोदी के ‘मिशन साउथ’ से द्रविड़ राजनीति गहरे संकट में : एस गुरुमूर्ति

नई दिल्ली, 16 अप्रैल . लोकसभा चुनाव-2024 के पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार जोरों पर है. इसी बीच मशहूर विचारक एस गुरुमूर्ति ने तमिलनाडु की राजनीति पर विचार रखते हुए बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘दक्षिण पुश’ ने क्षेत्रीय क्षत्रपों को ‘भ्रमित और हैरान’ कर दिया है.

एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया से खास बातचीत में एस गुरुमूर्ति ने कहा कि डीएमके की राजनीति ने अपना काम कर लिया है और अब वह थकी हुई नजर आ रही है. उन्होंने तमिलनाडु की राजनीति में उस ‘खालीपन’ के बारे में भी बात की जो राज्य की दो दिग्गज हस्तियों जे. जयललिता और एम. करुणानिधि के निधन के बाद आई है.

उन्होंने कहा कि जयललिता और करुणानिधि के बाद राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियां द्रमुक और अन्नाद्रमुक भटक गई हैं. उन्होंने पहले जैसी जीवंतता और जनता के बीच अपना विश्वास खो दिया है.

उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी के मिशन साउथ के बाद आज द्रविड़ राजनीति ‘गहरे संकट’ में है और पीएम मोदी के राज्य के बार-बार दौरे और वैश्विक मंच पर तमिल विरासत को बढ़ावा देना, उन्हें ‘परेशान’ कर रहा है. तमिलनाडु शायद देश का सबसे हिंदुत्ववादी राज्य है, ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं कि तमिलनाडु की धार्मिक जड़ें बहुत मजबूत हैं और 1960 के दशक के दौरान द्रविड़ आंदोलन ने इस पर ग्रहण लगा दिया. लेकिन, आज स्थिति बदल गई है, लोग अपनी जड़ों को फिर से मजबूत करने के लिए उत्सुक हैं. इससे द्रमुक बौखलाई हुई है, वह भारी वैचारिक भ्रम में है. यह नहीं जानती है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी से कैसे निपटा जाए.

साल 2018 में डीएमके कार्यकर्ताओं द्वारा लगाए गए ‘मोदी वापस जाओ’ के नारे का जिक्र करते हुए मशहूर विचारक एस गुरुमूर्ति ने कहा कि प्रधानमंत्री ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो उकसावे को हल्के में लेते हैं. गुरुमूर्ति ने आगे कहा, ”आप मोदी को उकसाएंगे, आप मुसीबत में पड़ जाएंगे. ”

आगे द्रविड़ राजनीति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, ”द्रमुक की नीति तमिलनाडु को द्रविड़ तरीके से पेश करने पर केंद्रित थी. पार्टी के संरक्षक करुणानिधि के पास यह सब समझाने और ठोस तरीके से कहने का कौशल था, लेकिन उनके बाद, पार्टी द्वारा इस संदेश को आगे बढ़ाना कठिन हो गया है.”

उन्होंने आगे कहा कि द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों परिवार द्वारा संचालित पार्टियां हैं और प्रगतिशील दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने में उनके पास ‘विचारों की कमी’ है.

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