नई दिल्ली, 1 जुलाई . ‘भीमसेनी कपूर’, जिसे बासर भी कहते हैं औषधीय गुणों से संपन्न माना जाता है. इसकी तासीर गर्म होती है और आकृत्ति नुकीली होती है. ये वात, पित्त, और कफ जैसे दोषों को संतुलित करने में मदद करता है.
धार्मिक दृष्टि से भी कपूर अहम है. इसका इस्तेमाल पूजा-हवन में किया जाता है. कोरोना का दौर लोग भूले नहीं हैं. उस समय कई लोग लौंग और कपूर की पोटली अपने पास रखते थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आमतौर पर मिलने वाला कपूर नकली और सिंथेटिक होता है? लेकिन भीमसेनी ही है जो खालिस कपूर के तौर पर अपना दबदबा बनाए हुए है.
भीमसेनी कपूर एक प्राकृतिक कपूर है, जो पेड़ से प्राप्त होता है. यह बड़े टुकड़ों में, अनियमित आकार का और थोड़ा भूरा या पीलापन होता है. इसकी सुगंध थोड़ी तीखी लेकिन बहुत शुद्ध होती है और जलाने पर यह पूरी तरह जल जाता है, कोई अवशेष नहीं छोड़ता. आयुर्वेदिक दवाओं में इसी प्राकृतिक कपूर का उपयोग किया जाता है.
सुश्रुत संहिता में भीमसेनी कपूर को “चक्षुष्य (नेत्रों के लिए सुखदायक) बताया गया है, जिसका उपयोग आंखों में शीतलता लाने या आंखों को आकर्षित बनाने के लिए किया जाता है. इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं, जो त्वचा में होने वाली जलन, खुजली और फटे पैरों के उपचार में मदद करते हैं.
चरक संहिता में बताया गया है कि भीमसेनी कपूर पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है, साथ ही यह भूख बढ़ाता है और पाचन से जुड़ी समस्या में भी उपयोगी है. यह कपूर सांस लेने में होने वाली तकलीफों को कम करने में मदद करता है और फेफड़ों के संक्रमण को ठीक करने में भी सहायक है.
भीमसेनी कपूर को डिफ्यूजर या कपूरदानी में जलाकर कमरे में सुगंध फैलाएं. इसी के साथ ही नारियल तेल में कपूर मिलाकर सिर की मालिश भी कर सकते हैं. कपूर की सुगंध कीड़े-मकोड़ों (मच्छर, कॉकरोच) को भगाने और हवा को शुद्ध करने में प्रभावी है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इसे जलाने से घर में खुशियां आती हैं और भाग्य तेज होता है. साथ ही, इसकी सुगंध मन को शांत करने और तनाव को कम करने में मदद करती है, जिससे एकाग्रता बढ़ती है.
–
एनएस/केआर