रेफर करने की प्रवृत्ति से बचें चिकित्सक : सीएम योगी

गोरखपुर, 18 अप्रैल . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को कहा कि एक चिकित्सक की सबसे बड़ी पहचान उसकी संवेदना होती है. यदि किसी डॉक्टर के मन में संवेदना नहीं है, तो वह डॉक्टर कहलाने का अधिकारी नहीं है. उसकी पहचान ही संवेदना से है. चिकित्सक की संवेदना गंभीर से गंभीर मरीज की आधी बीमारी दूर कर सकती है.

सीएम योगी ने चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों को यह नसीहत भी दी कि वे बेवजह मरीजों को उच्च केंद्रों में रेफर करने की प्रवृत्ति से बचें और मरीज को क्रिटिकल केयर उपलब्ध कराने में रिस्क लेने की आदत डालें.

सीएम योगी ने शुक्रवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), गोरखपुर के परिसर में 500 लोगों की क्षमता वाले विश्राम सदन (रैन बसेरे) का भूमि पूजन-शिलान्यास करने के बाद रैली को संबोधित किया. कुल 44.34 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाला यह विश्राम सदन पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा विश्राम सदन होगा. इसका निर्माण पावरग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की सीएसआर निधि से कराया जा रहा है.

शिलान्यास समारोह में मुख्यमंत्री ने कहा कि कोई भी चिकित्सा संस्थान डॉक्टर के व्यवहार के माध्यम से संवेदना का केंद्र भी होता है. संवेदना के इस केंद्र में अगर एक मरीज भर्ती होने आता है तो उसके साथ कम से कम तीन-चार अटेंडेंट होते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो कई बार अटेंडेंट की संख्या 10 तक हो जाती है. ऐसे में मरीज के साथ आने वाले अटेंडेंट के लिए आश्रय की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. इस 500 बेड के विश्राम सदन के शिलान्यास के साथ ही गोरखपुर एम्स को एक नई उपलब्धि प्राप्त हुई है.

उन्होंने कहा कि एम्स गोरखपुर का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2016 में किया था. साल 2019 में एम्स गोरखपुर में मरीजों का दाखिला शुरू हुआ था और 2021 में प्रधानमंत्री ने इसका लोकार्पण किया था. उन्होंने कहा कि साल 2016 में जो बीज एम्स के रूप में गोरखपुर में रोपा गया था, आज वह एक वटवृक्ष बनकर हजारों पीड़ितों को आरोग्य प्राप्त करने के लिए एक नया जीवनदान देने का केंद्र बन गया है. पहले एम्स गोरखपुर में होने की कल्पना भर की जा सकती थी. साल 2003 से हम लोग इसके लिए आवाज उठा रहे थे.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने दिल्ली के बाहर छह एम्स बनाने की घोषणा की थी, लेकिन उसके बाद यूपीए सरकार में यह क्रम थम सा गया था. मोदी सरकार बनने के बाद 10 साल में देश में 22 नए एम्स बने हैं या बन रहे हैं.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में एम्स गोरखपुर की ऑक्युपेंसी 75 से 80 प्रतिशत है. आईसीयू, क्रिटिकल केयर और ट्रॉमा सेंटर में भर्ती होने वाले मरीज के परिजन उनके साथ नहीं रह सकते. उन्हें बाहर ही रहना पड़ता है. इस कैंपस में कम से कम 1,200 लोग ऐसे होंगे, जिनको बाहर जहां-तहां सिर छुपाने के लिए पटरी पर, सड़कों के किनारे या फिर किसी अन्य जगह पर जाकर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. कोई व्यक्ति खुले में गर्मी, सर्दी या बारिश झेलने को मजबूर हो तो यह अमानवीय लगता है. ऐसे में यह आवश्यक है कि हम अपना मानवीय स्वरूप बनाएं और उन लोगों के बारे में सोचें जो अपने मरीज की पीड़ा के साथ यहां पर जुड़े हुए हैं. विश्राम सदन के रूप में हम ऐसी व्यवस्था बनाएं जहां पर तिमारदारों को न्यूनतम शुल्क पर रहने और सस्ते कैंटीन की सुविधा हो.

एसके/एबीएम/एकेजे