भविष्य के युद्धों में ड्रोन और मानव रहित टीमों के उपयोग पर चर्चा

नई दिल्ली, 4 मार्च . वायुसेना के पूर्व और वर्तमान अधिकारियों ने अंतरिक्ष दोहन के प्रभावी तरीकों, भविष्य के संघर्षों और युद्धों में ड्रोन तथा मानव रहित टीमों (एमयूएमटी) के उपयोग पर मंथन किया है. इसके अलावा वायुसेना हवाई युद्ध पर साइबर के प्रभाव का भी आकलन कर रही है.

भारतीय वायुसेना ने पांचवीं पीढ़ी के विमानों के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करने जैसे कई विषयों पर भी चर्चा की है. यह चर्चा मंगलवार को दिल्ली में वायुसेना सभागार में हुए ‘जम्बो’ मजूमदार अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में हुई.

सेमिनार का विषय ‘ईवॉल्विंग डाइनैमिक्स ऑफ एयरोस्पेस पावर’ था. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज (सीएपीएस) द्वारा आयोजित इस 16वें ‘जम्बो’ मजूमदार अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन किया.

सीएपीएस के महानिदेशक एयर वाइस मार्शल अनिल गोलानी (सेवानिवृत्त) ने भी सेमिनार को संबोधित किया.

‘जम्बो’ मजूमदार अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार एक वार्षिक कार्यक्रम है. इसका आयोजन सीएपीएस द्वारा स्वतंत्रता-पूर्व देश के एक उत्कृष्ट लड़ाकू पायलट स्वर्गीय विंग कमांडर करुण कृष्ण मजूमदार की स्मृति में किया जाता है.

सेमिनार में विभिन्न क्षेत्रों और अनुभवों से जुड़े अधिकारियों, शोधकर्ताओं और विमानन उत्साही लोगों ने भाग लिया. इस सेमिनार ने एयरोस्पेस क्षेत्र में भविष्य की गतिविधियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया.

पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) वी.आर. चौधरी ने कहा कि भारतीय सेना को नई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने की जरूरत है.

सेमिनार में ड्रोन और मानवरहित उड़ान भरने वाले अन्य उपकरणों पर प्रेजेंटेशन दिए गए. साथ ही यह भी बताया गया कि भविष्य में युद्ध पर इनके क्या प्रभाव हो सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि हमें नई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने की आवश्यकता है.

गौरतलब है कि रक्षा सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति ने सोमवार को सिफारिश की है कि वायुसेना की क्षमता में सुधार के लिए निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वायुसेना की क्षमता बेहतर करने के लिए डीआरडीओ, डिफेंस सेक्टर से जुड़े पीएसयू और निजी क्षेत्र मिलकर काम करें.

बीते सप्ताह वायुसेना प्रमुख ए.पी. सिंह ने भी कहा था कि भारतीय वायुसेना को प्रति वर्ष करीब 35 से 40 नए फाइटर जेट अपने बेड़े में शामिल करने की जरूरत है जिसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्वपूर्ण हो सकती है.

जीसीबी/एकेजे