नई दिल्ली, 9 मार्च . अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय छात्र संसद रविवार को दिल्ली में शुरू हुई. इसमें जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों के युवाओं की भागीदारी रही.
देशभर से आए 300 से अधिक जनजातीय युवा इस छात्र संसद के सहभागी हैं. इसमें जनजातीय समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भाषा, संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण एवं सशक्तिकरण पर मंथन किया गया.
छात्र संसद में दिए गए सुझावों को संकलित कर केंद्र सरकार को प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे आने वाले समय में नीतिगत निर्णयों में छात्र समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित हो सके.
जनजातीय छात्र संसद देशभर की 124 से अधिक जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रही है, जिसमें विशेष रूप से बैगा, सहरिया, मारिया, मोडिया जैसी अति पिछड़ी जनजातियों के छात्र अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं को लेकर मंच पर उपस्थित हुए.
जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों जैसे रजौरी, छोटा नागपुर, बासवाड़ा, बस्तर, गढ़चिरौली, नंदुरबार समेत विभिन्न वनवासी क्षेत्रों से विद्यार्थी यहां आए हैं. इन विद्यार्थियों ने शिक्षा और सरकारी योजनाओं की उपलब्धता एवं उनके क्रियान्वयन को लेकर अपने विचार रखे.
कार्यक्रम में जनजातीय छात्र समुदाय की शिक्षा एवं रोजगार की स्थिति, स्वाभिमान और देश की विकास यात्रा में जनजाति समाज की भूमिका तथा लोक कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में युवाओं की भूमिका जैसे विषयों पर विभिन्न सत्र आयोजित किए गए. इन सत्रों में छात्रों ने यह भी चर्चा की कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही छात्रवृत्ति, आवासीय विद्यालय, कौशल विकास कार्यक्रम जैसी योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी प्रभावी हैं. इसके साथ यह भी चर्चा की गई कि इन योजनाओं को कैसे और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है.
कार्यक्रम में जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके भी उपस्थित रहे.
चौथे सत्र में “लोक कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में युवाओं की भूमिका” विषय पर एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया. आईएएस अधिकारी सरोज कुमार ने बताया कि सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में युवाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जागरूक युवा न केवल योजनाओं की निगरानी कर सकते हैं, बल्कि उनके सफल कार्यान्वयन में सक्रिय भागीदारी भी निभा सकते हैं.
दुर्गादास उइके ने कहा कि जनजातीय समाज केवल एक समुदाय नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का वाहक है. हमारी प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा सामाजिक समरसता का सर्वोत्तम उदाहरण थी, जहां ज्ञान केवल सूचनाओं का संकलन नहीं, बल्कि सूक्ष्म से विराट की यात्रा का माध्यम था. उन्होंने कहा कि हमें अपनी बोली, खान-पान, रीति-रिवाज और परंपराओं पर गर्व करना चाहिए, क्योंकि हमारी संस्कृति अरण्य प्रधान संस्कृति रही है और जनजातीय समाज आज भी इस सनातन परंपरा का संवाहक बना हुआ है.
उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि प्राचीन काल में आचार्य चाणक्य ने जनजातीय समाज को संगठित कर राष्ट्रहित में एकजुट किया और घनानंद के अहंकार को ध्वस्त किया. इसी प्रकार स्वतंत्रता संग्राम में भगवान बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज का नेतृत्व करते हुए अपनी निर्णायक भूमिका निभाई. आज भी राष्ट्रविरोधी शक्तियां जनजातीय समाज को भ्रमित करने का षड्यंत्र कर रही हैं. ऐसे में यह आवश्यक है कि हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करें और वैचारिक मंथन एवं संघर्ष के माध्यम से हर चुनौती का सशक्त उत्तर दें.
उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा किए जा रहे प्रयास की सराहना की. उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जनजातीय समाज के उत्थान और उन्हें जागरूक करने के कार्य में निरंतर सक्रिय भूमिका निभा रही है.
अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री वीरेंद्र सिंह सोलंकी ने कहा कि परिषद सदैव समाज के हर वर्ग के सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध रही है. जनजातीय समाज भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है. इन समुदायों का उत्थान ही राष्ट्र की प्रगति का आधार है. आज का यह सत्र सिद्ध करता है कि देश का युवा केवल अपनी शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के व्यापक हितों पर भी चिंतन कर रहा है. अब 10 मार्च को छात्रा संसद और 11 मार्च को पूर्वोत्तर छात्र संसद आयोजित होगी, जिनमें देशभर के छात्र शिक्षा, नेतृत्व और राष्ट्र निर्माण जैसे विषयों पर संवाद करेंगे.
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जीसीबी/एकेजे