डिजिटल पीयर-बेस्ड सहयोग: प्रसव के बाद होने वाले अवसाद से निपटने की होगी जांच

New Delhi, 26 अगस्त . भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के तहत राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य एवं डेटा विज्ञान अनुसंधान संस्थान (एनआईआरडीएचडीएस) ने एक बड़ा अध्ययन शुरू करने की तैयारी की है. 

इसका मकसद यह जानना है कि डिजिटल सहकर्मी-आधारित (पीयर-बेस्ड) हस्तक्षेप महिलाओं को प्रसव के बाद होने वाले अवसाद यानी पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निपटने में किस तरह से मदद कर सकते हैं और इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है.

आईसीएमआर की इस परियोजना को स्वास्थ्य मंत्रालय की स्क्रीनिंग समिति की मंजूरी मिल चुकी है. इसमें अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम भी शामिल होगी. अध्ययन के तहत ‘कुशल मां’ नामक एक मोबाइल इंटरैक्टिव शिक्षा और सहायता कार्यक्रम का परीक्षण किया जाएगा, जो सांस्कृतिक रूप से अनुकूलित और पहले से प्रायोगिक रूप से आजमाया जा चुका है.

इस अध्ययन का उद्देश्य यह साबित करना है कि डिजिटल माध्यम से चलाए गए ऐसे सहायक कार्यक्रम प्रसव के बाद होने वाले अवसाद को कम करने, स्तनपान को प्रोत्साहित करने और परिवार नियोजन की जरूरतें पूरी करने में कितने प्रभावी हो सकते हैं. इसके साथ ही शोधकर्ता यह भी देखेंगे कि इनका लागत-प्रभाव पारंपरिक देखभाल की तुलना में कितना बेहतर है.

अध्ययन के लिए पंजाब, Madhya Pradesh और महाराष्ट्र से करीब 2,100 गर्भवती महिलाओं को शामिल किया जाएगा. इसमें 18 वर्ष से अधिक आयु की वे महिलाएं होंगी जो गर्भावस्था के 30-33 सप्ताह में होंगी. इन महिलाओं को दो समूहों में बांटा जाएगा, एक समूह को ‘कुशल मां’ कार्यक्रम मिलेगा जबकि दूसरे को सामान्य मानक देखभाल.

‘कुशल मां’ कार्यक्रम के तहत महिलाओं को प्रशिक्षित संचालकों द्वारा ऑनलाइन ऑडियो/वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छह महीने तक 28 शिक्षा और सहयोग सत्र दिए जाएंगे. इसमें चार सेशन प्रसव पूर्व और 24 सत्र प्रसव के बाद होंगे. साथ ही महिलाओं को व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा जाएगा, जहां उन्हें स्वास्थ्य शिक्षा से जुड़े वीडियो और सहकर्मी चर्चा का अवसर मिलेगा.

आईसीएमआर-एनआईआरडीएचडीएस की शोधकर्ता मोना दुग्गल ने कहा कि भारत ने प्रसव पूर्व और प्रसव के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में काफी प्रगति की है, लेकिन मातृ मृत्यु दर (1 लाख जन्म पर 97) और शिशु मृत्यु दर (1000 जन्म पर 35) अभी भी अधिक है. इसके अलावा, केवल 78 फीसदी माताओं और 79 प्रतिशत नवजात शिशुओं को ही प्रसव के दो दिन के भीतर देखभाल मिल पाती है.

यह अध्ययन अक्टूबर 2027 तक पूरा होने की उम्मीद है और इससे यह समझने में बड़ी मदद मिलेगी कि कैसे डिजिटल स्वास्थ्य कार्यक्रम भारत में मातृ और शिशु स्वास्थ्य को मजबूत बना सकते हैं.

जेपी/डीएससी