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Mumbai , 24 नवंबर . दिग्गज Actor धर्मेंद्र हिंदी सिनेमा के उन चंद सितारों में से एक थे, जिन्होंने न सिर्फ पर्दे पर अपनी दमदार मौजूदगी से दर्शकों के दिलों पर राज किया, बल्कि अपनी सादगी, संघर्ष और अटूट मेहनत से एक मिसाल कायम की. उनके निधन ने पूरे देश को शोक की लहर में डुबो दिया है. ऐसे में हर कोई उनके छह दशकों से ज्यादा लंबे सफर को याद कर रहा है.
8 दिसंबर 1935 को पंजाब के एक छोटे से गांव नसराली में जन्मे धर्म सिंह देओल का जीवन बेहद सरल था. उनके पिता केवल कृष्ण देओल एक स्कूल प्रिंसिपल थे और मां का नाम सतवंत कौर था. माता-पिता की परवरिश ने उन्हें मिट्टी से जोड़े रखा, लेकिन सिनेमा का जादू उन्हें Mumbai खींच लाया. शुरुआती दिनों में उन्होंने काफी संघर्ष किया, वह गैरेज के बाहर सोए, यहां तक कि उन्होंने 200 रुपए सैलरी वाली नौकरी भी की. इस दौरान 1960 में उन्हें ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ फिल्म का ऑफर मिला, जिससे उन्होंने Bollywood में डेब्यू किया.
इसके बाद वह ‘फूल और पत्थर’, ‘बंदिनी’, ‘आंखें’ जैसी फिल्मों से घर-घर में पहचाने जाने लगे. 1970 का दशक उनके लिए शानदार रहा, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘सीता और गीता’, ‘शोले’, ‘धरम वीर’ ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया. ‘शोले’ का वो डायलॉग ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ आज भी दर्शकों के कानों में गूंजता है. इसके बाद ‘चरस’, ‘चुपके चुपके’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘लाइफ इन ए… मेट्रो’, और ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया. उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, जिसमें 93 हिट और 49 सुपरहिट शामिल हैं.
उन्होंने अपने करियर में कई पुरस्कार जीते, जो उनके हिंदी सिनेमा में अहम योगदान के सबूत हैं.
धर्मेंद्र के पुरस्कारों की शुरुआत ही रोमांचक थी. 1965 में ‘आई मिलन की बेला’ के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ सहायक Actor का नामांकन मिला. यह वो दौर था जब वे राजेंद्र कुमार और सायरा बानो जैसे दिग्गजों के साथ स्क्रीन शेयर कर रहे थे और दर्शकों ने उनकी संजीदगी को सराहा. अगले ही साल, 1966 में ‘फूल और पत्थर’ ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ Actor के लिए पहला नामांकन दिलाया. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा चुकी थी, और मीना कुमारी के साथ उनकी जोड़ी ने रोमांस को नई परिभाषा दी.
1967 में ‘अनुपमा’ के लिए 14वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में स्मृति सम्मान मिला. वहीं, 1969 की उनकी फिल्म ‘सत्यकाम’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.
1970 का दशक आते ही धर्मेंद्र सुपरस्टार बन चुके थे और पुरस्कारों की बौछार शुरू हो गई. 1972 में ‘मेरा गांव मेरा देश’ के एक्शन हीरो रोल के लिए सर्वश्रेष्ठ Actor का फिल्मफेयर नामांकन आया. 1974 में ‘यादों की बारात’ ने फिर नामांकन दिलाया. ‘शोले’ फिल्म को 50वें फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का विशेष सम्मान मिला.
1990 के दशक में धर्मेंद्र निर्माता के रूप में चमके. 1990 में ‘घायल’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. सनी देओल की यह फिल्म 7 फिल्मफेयर अवॉर्ड जीत चुकी थी, और धर्मेंद्र का योगदान इसमें अहम था. 1991 में फिर ‘घायल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता. यह वह दौर था जब वे राजनीति में भी उतरे, 2004-2009 तक बीकानेर से सांसद बने. लेकिन सिनेमा में वे लगातार सक्रिय रहे.
2003 में सैंसुई व्यूअर्स चॉइस मूवी अवॉर्ड्स में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला. 2004 में भारतीय सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए विशेष सम्मान मिला. 2005 में जी सिने अवॉर्ड में लाइफटाइम अचीवमेंट और 2007 में पुणे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में लाइफटाइम अचीवमेंट, आईआईएफए लाइफटाइम अचीवमेंट, फिक्की-फ्रेम्स का लिविंग लीजेंड अवॉर्ड, डीबीआर एंटरटेनमेंट और कौमी एकता का सम्मान मिला.
धर्मेंद्र को सामाजिक सेवाओं के लिए भी पुरस्कार मिला. उन्होंने 2008 में मैक्स स्टारडस्ट अवॉर्ड्स में Actor पार एक्सीलेंस का नामांकन, 2009 में नासिक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में लाइफटाइम अचीवमेंट, 2010 में बिग स्टार एंटरटेनमेंट अवॉर्ड्स में बिग स्टार एंटरटेनर, और 2011 में अप्सरा प्रोड्यूसर्स गिल्ड में लाइफटाइम अचीवमेंट जैसे अवॉर्ड हासिल किए.
2012 में धर्मेंद्र India Government का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण मिला, जो उनके योगदान का सबसे बड़ा प्रमाण था. 2017 में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर नोबेल पुरस्कार और 2020 में न्यू जर्सी राज्य द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट का अवॉर्ड उनके नाम रहा.
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पीके/एएस