शिव नगरी के नागकूप में दर्शन को लगी भक्तों की कतार, श्रद्धालु बोले- ‘नाग देवताभ्याम नम:’

वाराणसी, 29 जुलाई . नागपंचमी के पावन अवसर पर वाराणसी के ऐतिहासिक नागकूप मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी तादाद दिखी. श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर सुबह से ही भक्त नागकूप के दर्शन- पूजन के लिए पहुंचने लगे. यह मंदिर महर्षि पतंजलि को समर्पित है और इसे नागकूप या कारकोटक वापी के नाम से जाना जाता है.

मान्यता है कि यहां स्नान और पूजा करने से कालसर्प दोष, अकाल मृत्यु और ग्रह बाधाएं दूर होती हैं. भक्तों का विश्वास है कि यह पूजन जीवन में शांति, संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा लाता है. किंवदंती के अनुसार, महर्षि पतंजलि ने अपने व्याकरण ग्रंथ ‘महाभाष्य’ की रचना नागरूप में इसी स्थान पर की थी और यहीं समाधिस्थ हुए थे. इसीलिए इस स्थान को ‘नागकूप’ कहा जाता है, जो आज भी आस्था का प्रमुख केंद्र है. स्कंद पुराण में भी इसे नाग पूजन के लिए विशेष स्थान बताया गया है.

नागकूप मंदिर के महंत आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया, “यह विश्व में एकमात्र ऐसा कुआं है, जिसे कारकोटक नाग के नागलोक जाने का मार्ग माना जाता है. नागपंचमी पर काशी के साथ-साथ अन्य राज्यों और जिलों से भी लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. सुबह से शुरू हुआ दर्शन का सिलसिला रात 12 बजे तक चलेगा. मंदिर की व्यवस्था प्रशासन के सहयोग से सुचारू रूप से चल रही है.”

उन्होंने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया, “नागकूप की प्राचीनता का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन इसका जीर्णोद्धार संवत 2081 में हुआ था, जो शिलापट पर अंकित है. यह स्थान युगों-युगों से है. कथाओं के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र के पुत्र को यहीं नाग ने काटा था. महर्षि पतंजलि ने यहीं ‘योग सूत्र’ और ‘अष्टाध्यायी’ की रचना की थी. यह स्थान हजारों वर्षों के इतिहास को समेटे हुए है.”

दर्शन के लिए आए श्रद्धालु अमित ने कहा, “मैं नाग देवता के दर्शन के लिए आया हूं. मान्यता है कि पांडवों ने कालसर्प दोष मिटाने के लिए यहीं पूजन किया था. भगवान की कृपा हम सब पर बनी रहे यही प्रार्थना है.”

श्रद्धालु उमा मिश्रा ने बताया, “नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा से विशेष कृपा प्राप्त होती है. हम हर साल यहां दर्शन के लिए आते हैं.”

एमटी/केआर