New Delhi, 8 सितंबर . Supreme court ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में राहत देने से इनकार कर दिया है. Supreme court ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मेधा पाटकर ने ट्रायल कोर्ट में अतिरिक्त गवाहों को बुलाने की मांग की थी.
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट भी इस मांग को खारिज कर चुका था. Supreme court से कोई राहत नहीं मिलने के बाद, मेधा पाटकर के वकील ने अपनी याचिका वापस ले ली.
यह मानहानि का मामला करीब 25 साल पुराना है, जब विनय कुमार सक्सेना एक सामाजिक संगठन ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे. उस दौरान मेधा पाटकर ने उन पर कई आरोप लगाए थे.
इसके जवाब में, वीके सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ दो मानहानि के मुकदमे दर्ज कराए थे. एक मुकदमा टेलीविजन साक्षात्कार में की गई टिप्पणियों को लेकर था, जबकि दूसरा प्रेस बयान से संबंधित था.
ट्रायल कोर्ट ने 1 जुलाई 2024 को मेधा पाटकर को दोषी ठहराया था, जिसमें उन्हें पांच महीने के साधारण कारावास और 10 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी.
वहीं इसके बाद एक सेशन कोर्ट ने पाटकर को अच्छे आचरण के आधार पर 25,000 रुपए के प्रोबेशन बॉन्ड पर रिहा कर दिया, लेकिन 1 लाख रुपए का जुर्माना देने की शर्त रखी थी.
Supreme court ने 11 अगस्त को मेधा पाटकर को निचली अदालत से मिली सजा में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. हालांकि, कोर्ट ने उनके कारावास की सजा और प्रोबेशन को निरस्त कर दिया था.
Supreme court के जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने स्पष्ट किया था कि निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट के दोषी ठहराने के फैसले में कोई बदलाव नहीं होगा.
मेधा पाटकर ने इस फैसले को Supreme court में चुनौती दी थी, लेकिन उन्हें कोई खास राहत नहीं मिल पाई. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दोषसिद्धि को बरकरार रखा था, हालांकि उसने मेधा पाटकर को राहत देते हुए हर तीन महीने में ट्रायल कोर्ट में पेश होने की शर्त में संशोधन कर दिया था, जिससे वह ऑनलाइन या वकील के माध्यम से पेश हो सकें.
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सार्थक/डीएससी