दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व पार्टनर जय अनंत देहाद्राई के मानहानि मुकदमे में महुआ मोइत्रा को समन भेजा

नई दिल्ली, 20 मार्च . दिल्ली उच्च न्यायालय ने वकील और पूर्व साथी जय अनंत देहाद्राई द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा को समन जारी किया है.

अदालत ने इस महीने की शुरुआत में महुआ को उनके खिलाफ “कैश-फॉर-क्वेरी” आरोपों के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई कथित अपमानजनक सामग्री से संबंधित भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और देहाद्राई के खिलाफ मानहानि के मुकदमे में अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था.

महुआ मोइत्रा को पिछले साल 8 दिसंबर को एथिक्स कमेटी की सिफारिश पर लोकसभा सांसद के रूप में निष्कासित कर दिया गया था, पर हीरानंदानी समूह के सीईओ दर्शन हीरानंदानी की ओर से सदन में सवाल पूछने के बदले नकद राशि हासिल करने के आरोप का सामना करना पड़ा.

अब देहाद्राई के मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि महुआ ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के साथ-साथ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उनके खिलाफ मानहानिकारक बयान दिए.

जस्टिस प्रतीक जालान ने बुधवार को पांच मीडिया हाउसों के साथ-साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स और गूगल एलएलसी को समन जारी किया.

अदालत ने महुआ को अंतरिम राहत की मांग करने वाले देहाद्राई के आवेदन पर जवाब देने का निर्देश दिया है और मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होनी तय की है. देहाद्राई महुआ से 2 करोड़ रुपये का हर्जाना मांग रहे हैं. उन्‍होंने आरोप लगाया है कि महुआ ने उन्‍हें “बेरोजगार” और “झुका हुआ” व्‍यक्ति कहा था. इसके अलावा, मुकदमे में महुआ को सोशल मीडिया पर देहाद्राई के खिलाफ और अधिक अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोकने की मांग की गई है.

देहाद्राई के वकील, अधिवक्ता राघव अवस्थी ने सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश की मांग नहीं की, लेकिन देहाद्राई के लीगल प्रैक्टिस पर कथित मानहानिकारक बयानों के प्रभाव का हवाला देते हुए मामले की तात्कालिकता पर जोर दिया.

न्यायमूर्ति जालान ने कहा कि इस प्रकृति के मामलों में दोनों पक्षों को अक्सर युद्धरत गुटों के रूप में देखा जाता है, न तो केवल पीड़ित और न ही अपराधी. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अदालत कक्ष के बाहर लड़ा जाता है.

न्यायाधीश ने इस मामले को उचित दिशा-निर्देश के लिए प्रभारी न्यायाधीश के समक्ष रखने का भी आदेश दिया और पूछा कि क्या देहाद्राई के मुकदमे का फैसला उसी पीठ द्वारा किया जाना चाहिए, जो महुआ का मुकदमा देख रही है.

देहाद्राई का कहना है कि महुआ के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का उनका मकसद राष्ट्रीय सुरक्षा और भ्रष्टाचार से संबंधित एक घटना की रिपोर्ट करना था, लेकिन महुआ ने उन्हें एक “प्रतिशोधी पूर्व-साथी” के रूप में चित्रित किया, जो पिछले रिश्ते को लेकर हिसाब बराबर करना चाहते हैं.

मुकदमे में दावा किया गया है कि महुआ के बयानों ने उनके परिवार, दोस्तों और कानूनी पेशे में सहकर्मियों की नजर में देहाद्राई की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, जिससे उनके मुवक्किलों बीच उनके चरित्र और ईमानदारी के बारे में चिंताएं पैदा हो गई हैं.

महुआ ने दुबे, देहाद्राई, 15 मीडिया संगठनों और तीन सोशल मीडिया मध्यस्थों के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था, क्योंकि उन्होंने इनके खिलाफ झूठे और मानहानिकारक आरोप लगाए थे.

दुबे के वकील अभिमन्यु भंडारी ने तर्क दिया था कि महुआ ने झूठी गवाही दी थी और उन्होंने अपने संसद लॉगिन क्रेडेंशियल भी साझा किए थे.

मानहानि का मुकदमा महुआ मोइत्रा द्वारा दुबे, देहाद्राई और कई मीडिया आउटलेट्स को कानूनी नोटिस जारी करने के बाद आया, जिसमें उन्होंने किसी भी गलत काम से इनकार किया था. दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें दावा किया गया था कि महुआ ने संसद में सवाल उठाने के लिए रिश्‍वत ली थी. दुबे के अनुसार, ये आरोप देहाद्राई द्वारा उन्हें संबोधित एक पत्र से उपजे हैं.

महुआ मोइत्रा ने कथित तौर पर देहाद्राई के खिलाफ 24 मार्च और 23 सितंबर को दो पुलिस शिकायतें दर्ज की थीं और बाद में समझौता वार्ता के कारण उन्हें वापस ले लिया गया था.

महुआ के कानूनी नोटिस में कहा गया है कि दुबे ने तत्काल राजनीतिक लाभ के लिए लोकसभा अध्यक्ष को भेजे गए पत्र में निहित झूठे और अपमानजनक आरोपों को दोहराया. इसमें आगे दावा किया गया कि दुबे और देहाद्राई दोनों अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए महुआ की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.

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