दिल्ली, 29 मई . जमीन के बदले नौकरी से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एफआईआर और आरोप पत्र रद्द करने की पूर्व रेल मंत्री लालू यादव की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.
दिल्ली उच्च न्यायालय में लालू यादव का पक्ष वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने रखा. उन्होंने तर्क दिया कि सीबीआई ने पूर्व रेल मंत्री के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले आवश्यक मंजूरी नहीं ली, जो कानूनन गलत है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, किसी भी जांच को शुरू करने के लिए मंजूरी लेना अनिवार्य है.
सिब्बल ने अदालत को बताया, “अन्य मामलों में बेशक मंजूरी ली गई हो. लेकिन, इस विशेष मामले में बिना पूर्व अनुमति के ही जांच की गई. यह मामला राजनीतिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और दर्शाता है कि कैसे जांच प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए.”
कपिल सिब्बल ने कहा कि मामले में 2 जून से चार्ज फ्रेम करने पर बहस शुरू होने वाली है. साल 2004 से 2009 के बीच कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. इस केस में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल होने के बाद सीबीआई ने साल 2020 में एफआईआर दर्ज की. यह प्रताड़ना की तरह है.
सीबीआई ने कहा, “जिस मुद्दे को लालू यादव के वकील यहां उठा रहे हैं, वह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है और इसे सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना है.”
दरअसल, लालू प्रसाद यादव यूपीए-1 सरकार में साल 2004 से 2009 तक रेल मंत्री थे. इस दौरान रेलवे में ग्रुप-डी की भर्तियां निकाली गईं. इसी भर्ती में लालू यादव पर धांधली का आरोप है. उन पर आरोप है कि नौकरी देने के बदले घूस के रूप में उन्होंने लोगों से जमीन ली. ईडी की चार्जशीट के मुताबिक, लालू परिवार की 7 जगहों पर जमीनें मिली हैं. लालू परिवार पर 600 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है. बता दें कि यह पूरा घोटाला रेलवे की भर्ती से ही संबंधित है. सीबीआई ने इस मामले में लालू और उनके परिवार के अन्य सदस्यों पर भी केस दर्ज किया है.
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पीएके/एकेजे