नई दिल्ली, 28 फरवरी . दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों के निलंबन को लेकर नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने स्पीकर विजेंद्र गुप्ता को पत्र लिखा था. इसके अगले दिन शुक्रवार को विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने उनकी चिट्ठी का जवाब दिया. उन्होंने इस चिट्ठी में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को विधानसभा में एंट्री नहीं देने पर भी जवाब दिया.
विजेंद्र गुप्ता ने दिल्ली की पूर्व सीएम आतिशी को जवाब देते हुए चिट्ठी में लिखा, ”आपका दिनांक 28.02.2025 को लिखा पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें आपने विपक्षी विधायकों के निलंबन और उन्हें विधानसभा परिसर में प्रवेश न दिए जाने के संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की है. यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि विपक्ष सदन में कार्य संचालन से संबंधित नियमों और विनियमों से अनभिज्ञ है, विशेष रूप से तब जब यही राजनीतिक दल पिछले 12 वर्षों तक सरकार में था. अतः, स्थिति को स्पष्ट करने के लिए हाल की घटनाओं का एक क्रमवार विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं.”
”24 फरवरी, 2025 को जब अध्यक्ष का चुनाव संपन्न हुआ, यह एक गरिमामयी प्रक्रिया होनी चाहिए थी. परंतु, दुर्भाग्यवश विपक्षी सदस्यों द्वारा नारेबाजी और व्यवधान उत्पन्न कर इस प्रक्रिया को बाधित किया गया. इस अशोभनीय आचरण के बावजूद, मैंने संयम बरतते हुए किसी भी विधायक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की, ताकि हमारी नई विधानसभा अवधि की शुरुआत लोकतांत्रिक समावेशन की भावना से हो. 25 फरवरी, 2025 को, जब माननीय उपराज्यपाल ने उद्घाटन भाषण दिया, विपक्षी विधायकों ने पुनः व्यवधान उत्पन्न किया, जिससे उपराज्यपाल अपने संबोधन को गरिमापूर्ण ढंग से पूरा नहीं कर सके. यह आचरण पांचवीं अनुसूची (आचार संहिता नियमावली) के स्पष्ट उल्लंघन के अंतर्गत आता है, विशेष रूप से निम्नलिखित प्रावधान के तहत यदि कोई सदस्य उपराज्यपाल के सदन में उपस्थित रहते हुए उनके अभिभाषण को बाधित करता है, चाहे वह भाषण, बिंदु-विशेष उठाने, वाकआउट करने या किसी अन्य माध्यम से हो, तो इसे उपराज्यपाल के प्रति अनादर एवं सदन की अवमानना माना जाएगा और इसे अनुशासनहीन आचरण की श्रेणी में रखकर आवश्यक कार्रवाई की जा सकती है.”
उन्होंने लिखा, ”इस स्थापित नियम का पालन करते हुए तथा संसदीय प्रक्रियाओं के अनुरूप, एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया और बहुमत से पारित हुआ, जिसके तहत सदन के कार्य में व्यवधान डालने वाले 21 विधायकों को तीन दिनों के लिए निलंबित किया गया. यह निर्णय मनमाना नहीं था, बल्कि संसदीय नियमों और पूर्व मिसालों पर आधारित था. विधानसभा परिसर में प्रवेश के संबंध में विधानसभा के नियमों में “सदन के परिसीमन” की व्यापक परिभाषा दी गई है, जिसमें निम्नलिखित क्षेत्र सम्मिलित हैं, विधानसभा कक्ष, लॉबी, गैलरी, विधानसभा सचिवालय द्वारा उपयोग किए जा रहे कक्ष, अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के कक्ष, समिति कक्ष, विधानसभा पुस्तकालय, अध्ययन कक्ष, दलों के कक्ष, विधानसभा सचिवालय के अधिकारियों के नियंत्रण में रहने वाले सभी परिसर एवं इन तक जाने वाले मार्ग तथा ऐसे अन्य स्थान, जिन्हें अध्यक्ष समय-समय पर निर्दिष्ट कर सकते हैं.”
स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने पत्र में आतिशी को आगे लिखा, ”इसके अलावा, नियम 277, बिंदु 3 (डी) स्पष्ट रूप से कहता है, जो सदस्य सदन की सेवा से निलंबित किया गया है, उसे सदन के परिसर में प्रवेश करने और सदन एवं समितियों की कार्यवाही में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाएगा. यह स्पष्ट है कि जब कोई सदस्य निलंबित होता है, तो उसे इन परिसीमित क्षेत्रों में प्रवेश से वंचित किया जाता है, जो कि एक स्थापित संसदीय परंपरा है. विधानसभा के गंभीर विषयों से ध्यान भटकाने का प्रयास, मुझे यह कहने में अत्यंत खेद है कि दिल्ली की जनता से जुड़े गंभीर मुद्दों, विशेष रूप से कैग (सीएजी) रिपोर्ट्स पर चर्चा करने के बजाय, विपक्ष ने सदन में व्यवधान उत्पन्न करने का मार्ग अपनाया. ये रिपोर्ट्स उस अवधि से संबंधित हैं जब आपकी पार्टी सत्ता में थी और आपने वरिष्ठ मंत्री तथा अंततः मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था. कैग की संवैधानिक भूमिका बढ़ावा देना है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने निर्णयों में कैग की भूमिका को संविधान की मूल संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना है. यह तथ्य प्रमाणित है कि वर्ष 2017-18 के बाद से कैग रिपोर्ट्स विधानसभा में प्रस्तुत नहीं की गई, जबकि तत्कालीन विपक्ष (जिसका नेतृत्व उस समय के नेता प्रतिपक्ष कर रहे थे) ने राष्ट्रपति, विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और मुख्य सचिव तक इस विषय पर कई अभ्यावेदन भेजे थे.”
उन्होंने लिखा, ”इस संबंध में, माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने 24 जनवरी, 2025 को डब्ल्यूपी (सी) नं. 18021/2024 में स्पष्ट रूप से निर्णय दिया है, यदि सरकार को सौंपी गई कैग रिपोर्ट्स को अत्यधिक समय तक सार्वजनिक एवं विधायी समीक्षा से रोका जाता है, तो यह संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध होगा. यह न्यायिक निर्णय पारदर्शिता और जवाबदेही की संवैधानिक अनिवार्यता को रेखांकित करता है, जिसे निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में हम सभी को बनाए रखना चाहिए. इस उच्च सदन के अध्यक्ष के रूप में, मेरा कर्तव्य है कि सदन की कार्यवाही कानून, संवैधानिक सिद्धांतों और संसदीय प्रक्रियाओं के अनुरूप संचालित हो. प्रत्येक सदस्य, चाहे वह सत्ता पक्ष से हो या विपक्ष से, उसका दायित्व है कि वह गंभीर चर्चा, रचनात्मक आलोचना और जनहित में सार्थक समाधान प्रस्तुत करें.”
उन्होंने अंत में लिखा, ”मैं आपसे, विपक्ष की नेता के रूप में, आग्रह करता हूं कि आप अपने सहयोगी विधायकों को इस सदन की गरिमा बनाए रखने और सदन में रचनात्मक सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करें. दिल्ली की जनता एक जिम्मेदार एवं प्रभावी विधानसभा की हकदार है, जहां उनके मुद्दों पर गंभीर बहस और निर्णय लिए जाएं.”
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एसके/एबीएम