दांडी मार्च 95वीं वर्षगांठ : मोदी सरकार ने गांधीजी की विरासत को क‍िया सम्मानित, कांग्रेस पर राजनीतिक स्वार्थ का आरोप

नई दिल्ली, 12 मार्च . महात्मा गांधी के दांडी मार्च की 95वीं वर्षगांठ पर आयोज‍ित ऐतिहासिक मार्च में हिस्सा लेने वालों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी. यह मार्च भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक अध्याय है. दांडी मार्च (जिसे नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है) ने एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन को जन्म दिया और पूरे देश में सविनय अवज्ञा की लहर पैदा कर दी.

नमक सत्याग्रह की 95वीं वर्षगांठ मनाते हुए यह ध्यान रखना उचित है कि किस तरह से इस विरासत को संबंधित सरकारों, विशेषकर यूपीए और एनडीए के तहत ‘सम्मानित और शोषित’ किया गया है.

लोकप्रिय सोशल मीडिया हैंडल मोदी आर्काइव ने विभिन्न युगों के विवरणों को प्रलेखित किया है, जिससे यह पता चलता है कि कैसे इसका इस्तेमाल कांग्रेस सरकारों ने एक राजनीतिक चाल के रूप में किया था और इसे ‘कांग्रेस-विशेष’ अभियान में बदल दिया गया था.

इसमें दावा किया गया है कि कांग्रेस सरकारों ने राजनीतिक लाभ उठाने के लिए दांडी मार्च का इस्तेमाल किया और गांधी जी की विरासत को सच्ची श्रद्धांजलि देने के बजाय इसे एक प्रतीकात्मक इवेंट तक सीमित कर दिया. इसमें यह भी कहा गया है कि कांग्रेस की लगातार सरकारों ने राजनीतिक सुविधा के लिए महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल किया और उनके आदर्शों को कायम रखने में विफल रही.

इसके विपरीत, जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था (जो भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने की पहल थी), तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीजी की आत्मनिर्भरता की भावना को श्रद्धांजलि देते हुए एक स्मरणीय दांडी मार्च को हरी झंडी दिखाई.

पोस्ट में कहा गया, “यह 21 दिन का मार्च न केवल ऐतिहासिक मार्च की पुनरावृत्ति था, बल्कि गांधी की आत्मनिर्भरता और प्रतिरोध की भावना को श्रद्धांजलि भी थी. इसने भारत के अधीनता से संप्रभुता तक के सफर को सम्मानित करने वाले साल भर के कार्यक्रम में कार्यक्रमों की एक श्रृंखला की शुरुआत को चिह्नित किया.” हालांकि, ठीक 20 साल पहले 2005 में ऐसा नहीं था, जब कांग्रेस पार्टी ने 2005 में दांडी मार्च की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए इसी तरह का कार्यक्रम आयोजित किया था.

मोदी आर्काइव के अनुसार, इस स्मरणोत्सव के पीछे का उद्देश्य बिल्कुल अलग था. एकता के सूत्र में बंधने के बजाय, इसे तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के उद्देश्य से एक राजनीतिक अभियान में बदल दिया गया. 30 जनवरी 2005 को सोनिया गांधी ने इस मार्च को हरी झंडी दिखाई थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दांडी मार्च में इसका समापन किया था.

पोस्ट में दावा किया गया, “इस मार्च को गुजरात में मोदी के नेतृत्व की ओर सीधा ‘चुनौती’ के रूप में प्रस्तुत किया गया था और इसका उद्देश्य गुजरात में पार्टी के घटते प्रभाव को पुनर्जीवित करना था.”

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित विभिन्न वर्गों ने भी इस मार्च की निंदा की थी. आडवाणी ने कहा था कि इस ऐतिहासिक मार्च में गुजरात के मुख्यमंत्री समेत सभी राजनीतिक दलों और नेताओं को भाग लेना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे ने उन्हें मार्च से बाहर रखा.

कांग्रेस द्वारा प्रायोजित इस मार्च की विभिन्न वर्गों ने आलोचना की थी, क्योंकि इसने कई गांधीवादी नेताओं को दरकिनार किया और गांधी पर एकाधिकार स्थापित किया.

गुजरात सर्वोदय मंडल और गुजरात खादी मंडल जैसे कई समूहों ने इसमें भाग नहीं लिया और कांग्रेस पर राजनीतिक लाभ के लिए गांधी की विरासत का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.

वरिष्ठ गांधीवादियों ने यह दावा करते हुए इसमें हिस्सा नहीं लिया था कि यह कार्यक्रम महात्मा गांधी को सम्मानित करने के लिए नहीं, बल्कि कांग्रेस के राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए आयोजित किया गया था.

नमक सत्याग्रह के महत्व के बारे में कांग्रेस की समझ पर भी चिंताएं व्यक्त की गईं, जो संसाधनों पर लोगों के अधिकार और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक था.

2007 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उनसे दांडी मार्च की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 2005 में किए गए वादों पर कार्रवाई में तेजी लाने का आग्रह किया था. बाद में एक कार्यक्रम में उन्होंने गांधीजी के ऐतिहासिक मार्च को महज एक प्रतीकात्मक कार्यक्रम तक सीमित करने के लिए यूपीए की आलोचना भी की थी. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही गांधी जी की विरासत को सही मायने में सम्मान मिला.

30 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के दांडी में राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक (एनएसएसएम) का उद्घाटन किया. यह वही परियोजना है जिसकी घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2005 में की थी, लेकिन यूपीए सरकार के दौरान इसे पूरा नहीं किया जा सका.

मोदी आर्काइव एक्स हैंडल से कहा गया, “दांडी मार्च की 75वीं वर्षगांठ को पार्टी-केंद्रित कार्यक्रम तक सीमित करने से लेकर गांधी के नाम पर किए गए वादों को त्यागने तक, कांग्रेस का दृष्टिकोण श्रद्धा से नहीं, बल्कि स्वार्थ से प्रेरित रहा है. इसके विपरीत, मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि गांधीजी की विरासत को उनकी भावना और ठोस कार्रवाई के माध्यम से संरक्षित किया जाए.”

एफजेड/