साइकिल ने बदली लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर की किस्मत, टीचर से तय किया अरबों के कारोबार का सफर

नई दिल्ली, 25 सितंबर . भारत के उद्योग जगत की बात होती है तो अदाणी, अंबानी, टाटा जैसे नाम ही सुनाई देते हैं. जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर न सिर्फ भारतीय उद्योग जगत का कायाकल्प किया, बल्कि अपने कारोबार का झंडा वैश्विक स्तर पर भी बुलंद किया. लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने वाले हैं, जो पेशे से तो एक टीचर थे और जब वह उद्योग जगत में उतरे तो उनकी जेब खाली थी, लेकिन उन्होंने खाली जेब को सोच अपनी सोच के आड़े आने नहीं दिया.

भारत के मशहूर उद्योगपति लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर, जिन्होंने एक साइकिल की दुकान से हजारों करोड़ के कारोबार का सफर तय किया. उन्होंने अपने करियर का आगाज एक साइकिल की दुकान खोलकर किया था, मगर उन्होंने अपनी मेहनत और कठिन लगन से कई औद्योगिक यूनिटों की स्थापना की.

20 जून, 1869 को मैसूर के बेलगांव जिले में स्थित एक छोटे से गांव गुरलाहोसुर में पैदा हुए लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर ने ‘किर्लोस्कर उद्योग समूह’ की नींव रखी थी.

उनके पिता काशीनाथ पंत एक वेदांत-पंडित थे. इसलिए उनके परिवार को उम्मीद थी कि वह भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए यही काम करेंगे, लेकिन किर्लोस्कर ने अपनी किस्मत को खुद लिखने का फैसला किया. उन्होंने परंपराओं से अलग होकर इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रवेश किया. हालांकि, बचपन में उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था. लेकिन, बाद में उन्होंने मैकेनिकल ड्राइंग सीखी और मुंबई के ‘विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट’ में अध्यापक के तौर पर नियुक्त हुए. बताया जाता है कि वह अपने खाली समय में कारखाने में काम करते थे. यहीं से उनकी मशीनों में रुचि बढ़ी.

किर्लोस्कर ने पहली बार एक शख्स को साइकिल चलाते हुए देखा तो उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से साइकिल की दुकान खोलने का फैसला किया. वह इसे बेचने के अलावा लोगों को साइकिल भी चलाना सिखाते थे.

इसी दौरान लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर जिस स्कूल में अध्यापक के तौर पर पढ़ाते थे. वहां, उनकी जगह एक एंग्लो इंड‍ियन को प्रमोशन दे दिया दया, इसके बाद उन्होंने अध्यापक के पद से इस्तीफा दे दिया. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने एक कारखाना लगाया, जिसमें चारा काटने की मशीन और लोहे के हल बनाए जाने लगे. यहां भी अड़चनें आईं और उन्हें अपने कारखाने को महाराष्ट्र लाना पड़ा. यहीं उन्होंने 32 एकड़ जमीन पर ‘किर्लोस्कर वाड़ी’ नाम की औद्योगिक बस्ती की नींव डाली.

इस जगह की कायापलट गई और किर्लोस्कर ने कई औद्योगिक यूनिटों की नींव रखी. इनमें खेती और उद्योगों में काम आने वाले प्रोडक्ट्स बनने लगे. किर्लोस्कर के काम की लोकमान्य तिलक, जवाहर लाल नेहरू और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसी महान शख्सियतों ने तारीफ की. उद्योगपति लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर का 26 सितंबर 1956 को निधन हो गया.

हालांकि, उनके निधन के बाद कंपनी ने और भी तरक्की की. आज के समय में कंपनी का कारोबार दुनियाभर में फैला हुआ है और इसकी आय अरबों में है.

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