बेगूसराय, 12 अक्टूबर . बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर है. इस बार सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी इंडिया ब्लॉक के बीच एक-एक सीट के लिए लड़ाई देखी जा रही है. ऐसे में बेगूसराय का तेघरा विधानसभा सीट का चुनाव काफी अहम होगा, जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का पुराना गढ़ माना जाता रहा है.
तेघरा, बेगूसराय का एक महत्वपूर्ण उपमंडल, चुनावी इतिहास की दृष्टि से बेहद रोचक है. 1951 में गठित यह विधानसभा क्षेत्र 1967 तक ‘तेघरा’ के नाम से जाना जाता रहा. उसके बाद इसका नाम बदलकर ‘बरौनी’ कर दिया गया और 2008 के परिसीमन आयोग के फैसले से फिर ‘तेघरा’ नाम लौटा.
कुल 15 चुनावों में छह बार ‘तेघरा’ और नौ बार ‘बरौनी’ के नाम से मतदान हुआ. इस सीट पर सीपीआई का दबदबा अटल रहा. बिहार और देश के अन्य हिस्सों में सीपीआई का जनाधार कमजोर पड़ने के बावजूद, यह क्षेत्र पार्टी के मजबूत गढ़ों में शुमार है.
‘बरौनी’ अवधि के सभी नौ चुनावों में सीपीआई ने जीत हासिल की. 1962 से शुरू यह सिलसिला 2005 तक चला, जब पार्टी ने लगातार 10वीं जीत दर्ज की. इससे पहले 1952 और 1957 में कांग्रेस ने कब्जा किया था. 2008 के परिसीमन के बाद क्षेत्रीय बदलावों ने सीपीआई की पकड़ को चुनौती दी. 2010 में भाजपा ने सीट जीती, जबकि 2015 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने बाजी मार ली. उस चुनाव में सीपीआई तीसरे नंबर पर रही. लेकिन 2020 में महागठबंधन के तहत सीपीआई को यह सीट मिली और पार्टी ने जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के उम्मीदवार को 47,979 वोटों के भारी अंतर से हराकर 11वीं बार इतिहास रचा.
तेघरा विधानसभा के स्थानीय मुद्दों की बात करें तो यहां पर बाढ़ नियंत्रण, कृषि संकट और प्रवासन प्रमुख हैं. 2020 में 63 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था, जो इस बार भी उम्मीद जगाता है. भौगोलिक रूप से तेघरा बूढ़ी गंडक के किनारे बसा है, जबकि गंगा नदी निकट ही बहती है. बरौनी औद्योगिक नगर से मात्र 6 किलोमीटर दूर होने के बावजूद, यहां की 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है.
तेघरा विधानसभा की कुल जनसंख्या 4,96,245 है, जिसमें 2,62,488 पुरुष और 2,33,757 महिलाएं शामिल हैं. मतदाता सूची में कुल 3,05,595 नाम दर्ज हैं, जिनमें 1,60,366 पुरुष, 1,45,217 महिलाएं और 12 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. यह आंकड़ा विशेष गहन संशोधन (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) के बाद तैयार किया गया है, जो 2003 के बाद पहली बार हुआ.
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एससीएच/एबीएम