बोलने, पहनने, धर्म मानने और विरोध करने की आजादी है संविधान : रणदीप सुरजेवाला

नई दिल्ली, 16 दिसंबर . राज्यसभा में संविधान पर चर्चा करते हुए कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि संविधान के 75 वर्षों की बात करें तो उसके लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि संविधान है क्या. क्या संविधान एक किताब का नाम है, क्या संविधान पूजा जाने वाला एक ग्रंथ है, क्या संविधान हाथी पर रखकर निकाला जाने वाला एक शास्त्र है?

सभापति के आसन पर आसीन घनश्याम तिवाड़ी ने सुरजेवाला को टोकते हुए कहा कि संविधान का यदि संधि विच्छेद करें तो इसका अर्थ होता है ‘सभी के लिए समान विधान’. सुरजेवाला ने कहा कि बाबा साहेब ने भी यही तय किया था कि संविधान सभी के लिए सामानता है. संविधान तो आजादी है, यानी देखने की आजादी, बोलने की आजादी, पहनने, विरोध, धर्म मानने, असहमत होने की आजादी. सत्ता के सिंहासन और बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोगों को आज की तारीख में यह जानने की जरूरत है कि संविधान के मायने क्या हैं. वे सरकार बनाने और सत्ता हथियाने को संविधान मान बैठे हैं. लेकिन, गरीबों की जरूरत के सामने सत्ता की जवाबदेही को संविधान कहते हैं.

सुरजेवाला ने कहा कि वे (सत्ता पक्ष) ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के डंडा तंत्र से विरोधियों को झुकाने और सरकारों को गिराने को संविधान मान बैठे हैं. लेक‍िन, देश के लिए नैतिकता, बहुमत और ईमानदारी की कसौटी पर सत्ता और शासन का खरा उतरना संविधान है. जूती गांठने वाले गरीब, बोझा ढोने वाले कुली, मजदूर, किसान, ट्रक ड्राइवर, मिस्त्री की आवाज को बुलंद करना ही संविधान है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि वे लोग साधु का छद्म वेश धारण कर मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखाओं को कुचल देने को संविधान मान बैठे हैं. लेकिन, पक्षीराज जटायु की तरह न्याय एवं कर्तव्य बोध के लिए कुर्बानी देना संविधान है. बाबा साहेब आंबेडकर की एक बड़ी चिंता थी, आर्थिक और सामाजिक असमानता. वह मानते थे कि यह राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा है. संविधान को यदि सशक्त बनाना है तो हमें बाबा साहेब की चिंताओं पर जरूर ध्यान देना होगा.

जीसीबी/एबीएम