कांग्रेस ने कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को देकर भारत की संप्रभुता के साथ किया समझौता : एस जयशंकर

नई दिल्ली, 1 अप्रैल . विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने देश की आजादी के बाद कच्छतीवु द्वीप को श्रीलंका को देने के लिए कांग्रेस सरकारों की आलोचना की है.

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने सोमवार को भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए इस मामले में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के रवैये की आलोचना की. उन्होंने कच्छतीवु द्वीप को श्रीलंका को देने के लिए तमिलनाडु की वर्तमान डीएमके सरकार को भी जिम्मेदार बताते हुए कहा कि संसद में लगातार मछुआरों का मुद्दा उठाने वाली यही दोनों पार्टियां ( कांग्रेस और डीएमके ) इस समस्या के लिए जिम्मेदार हैं.

विदेश मंत्री ने कहा कि कांग्रेस और डीएमके इस मामले से ऐसे पल्ला झाड़ रहे हैं, जैसे उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है, जबकि यही दोनों पार्टियां इस समस्या के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि यह किसने किया और आज हमें यह भी जानना है कि इसे किसने छुपाया.

उन्होंने कहा कि लोगों को, खासकर तमिलनाडु के लोगों को यह जानना चाहिए कि कच्छतीवु द्वीप को श्रीलंका को कैसे दिया गया, किसने दिया और किस तरह से भारतीय मछुआरों के अधिकारों को सीमित कर दिया गया. उन्होंने कहा कि इस समझौते की वजह से 20 वर्षों में भारत के 6,180 मछुआरों को श्रीलंका ने हिरासत में ले लिया. इस दौरान श्रीलंका ने मछली पकड़ने वाली 1175 नौकाओं को भी जब्त किया.

विदेश मंत्री ने जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए एक बयान को कोट करते हुए कहा कि नेहरू ने इस द्वीप को छोटा द्वीप बताते हुए कहा था कि वे इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देते और उन्हें इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई झिझक नहीं है. नेहरू ने यहां तक कहा था कि उन्हें इस तरह के मामले अनिश्चितकाल तक लंबित रखना और संसद में बार-बार उठाया जाना पसंद नहीं है.

इंदिरा गांधी ने इसे लिटल रॉक बताते हुए कहा था कि इसका कोई महत्व नहीं है. विदेश मंत्री ने बताया कि वर्ष 1974 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ, जिसमें कच्छतीवु द्वीप को श्रीलंका को दे दिया गया, लेकिन वहां पर फिशिंग का अधिकार भारतीय मछुआरों के पास भी था. फिर 1976 में यह तय हुआ कि भारत श्रीलंका की टेरेटरी का सम्मान करेगा.

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