भारत पर जलवायु परिवर्तन का गहरा असर, 70% लोग कर रहे पानी की कमी का सामना: रिपोर्ट

New Delhi, 18 नवंबर . जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है. India पर भी इसका बड़े पैमाने पर असर पड़ रहा है. 70 प्रतिशत से अधिक भारतीयों ने व्यक्तिगत रूप से भीषण गर्मी, सूखे और पानी की कमी का सामना करने की बात स्वीकार की है. Tuesday को जारी एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ.

जलवायु परिवर्तन संचार पर येल कार्यक्रम की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 और 2025 के बीच 19,000 से अधिक लोगों पर ये सर्वे किया गया. इसके अनुसार

India के राज्यों और जिलों में मौसम के अनुभव और जलवायु परिवर्तन की भूमिका के बारे में अलग-अलग धारणाएं रखते हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर पिछले 12 महीनों में 71% भारतीयों ने गंभीर गर्मी की लहरों, 59% ने कृषि कीट और बीमारियों, 59% लोगों ने बिजली कटौती, 53% ने प्रदूषण, 52 सूखा, 52% ने पानी की कमी और 51% ने गंभीर वायु प्रदूषण का अनुभव किया है.

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ व्याख्याता और प्रमुख लेखकों में से एक डॉ. जगदीश ठाकर ने कहा, “India तेजी से विकास कर रहा है. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि विभिन्न राज्यों और जिलों के लोग जलवायु परिवर्तन को कैसे समझते और अनुभव करते हैं. ये मानचित्र स्थानीय और राज्य के नेताओं को ऐसी जलवायु कार्य योजनाएं बनाने में मदद कर सकते हैं, जो लोगों की जीवन वास्तविकताओं को दिखाएं और समाधानों के लिए टिकाऊ जन समर्थन तैयार करें.”

India के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 78 प्रतिशत वयस्कों ने व्यक्तिगत रूप से भीषण गर्मी का अनुभव किया, जो देश में सबसे अधिक है. इसी तरह Rajasthan , Haryana और Odisha में भी 80 प्रतिशत वयस्कों ने यही अनुभव किया. इसके मुकाबले, केरल और तमिलनाडु में आधे से अधिक वयस्कों ने यही अनुभव साझा किया.

देश भर में केवल 35 प्रतिशत भारतीयों ने गंभीर चक्रवातों का अनुभव किया है, लेकिन, Odisha में यह संख्या 64 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. अक्टूबर 2024 में Odisha चक्रवात दाना से बुरी तरह प्रभावित हुआ था.

Odisha सूखे के मामले में भी आगे है. यहां दो तिहाई से अधिक लोग सूखे और पानी की कमी का अनुभव करते हैं.

जलवायु परिवर्तन संचार पर येल कार्यक्रम की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जेनिफर मार्लोन ने कहा, “India में लोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का कैसे अनुभव कर रहे हैं, यह आंकड़े निर्णयकर्ताओं को सार्वजनिक जोखिम की समझ बेहतर करने और भारतीयों के लिए उपयुक्त जलवायु अनुकूलन, संचार और सतत विकास नीतियां बनाने में मदद कर सकते हैं.”

एसएचके/वीसी