सीजेआई गवई ने नेपाल के हालात का किया जिक्र, कहा-हमें अपने संविधान पर गर्व

New Delhi, 10 सितंबर . Supreme court में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान पांच जजों की संविधान पीठ ने पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश के अस्थिर राजनीतिक हालात का जिक्र किया. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई की अगुवाई वाली बेंच ने भारतीय संविधान की स्थिति पर गर्व जताते हुए कहा कि पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है, यह देखकर हमारा संविधान और मजबूत लगता है.

दरअसल, सुनवाई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए रेफरेंस पर हो रही थी, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या कोर्ट राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों या राष्ट्रपति द्वारा समयसीमा तय कर सकता है.

अप्रैल 2025 के एक फैसले में Supreme court ने राज्यपालों को तीन महीने की समयसीमा दी थी, जिसके खिलाफ केंद्र सरकार ने यह रेफरेंस भेजा. पीठ में सीजेआई गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदूरकर शामिल हैं.

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 1975 की इमरजेंसी का जिक्र करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी सरकार को जनता ने सबक सिखाया, फिर जनता ने ही उन्हें भारी बहुमत से वापस सत्ता में ला दिया. सीजेआई गवई ने सहमति जताते हुए कहा, “हां, भारी बहुमत से. यह संविधान की ताकत है.” फिर उन्होंने नेपाल के हालात का उल्लेख किया, जहां जेन-जी प्रदर्शनकारियों के हिंसक आंदोलन ने Prime Minister के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. सीजेआई गवई ने कहा, “हमें अपने संविधान पर गर्व है. देखिए हमारे पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है. नेपाल में जो हम देख रहे हैं.”

जस्टिस विक्रम नाथ ने सीजेआई की बात पर सहमति जताते हुए कहा, “हां, बांग्लादेश में भी.” उनका इशारा पिछले साल बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों की ओर था, जिसने शेख हसीना सरकार को गिरा दिया था.

बता दें कि पड़ोसी मुल्क नेपाल में जेन-जी युवाओं के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार और social media प्रतिबंध विरोधी प्रदर्शनों ने हिंसक रूप धारण कर लिया है. Prime Minister के.पी. शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया. प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, Supreme court और नेताओं के घरों को आग लगा दी.

एससीएच/डीएससी