‘सिटी लाइट्स’ को 11 साल पूरे, हंसल मेहता बोले- टीम में गजब का जुनून था

मुंबई, 30 मई . फिल्म निर्माता-निर्देशक हंसल मेहता की फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ को सिनेमाघरों में रिलीज हुए 11 साल हो चुके हैं. मेहता ने सोशल मीडिया पर एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया और बताया कि उनकी 2014 की फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ उनके लिए बहुत खास थी. इसे उन्होंने बहुत प्यार और मेहनत से बनाया. लोगों पर फिल्म की गहरी छाप पड़ी और उसका असर आज भी बरकरार है.

इंस्टाग्राम पर हंसल ने फिल्म की कुछ तस्वीरें शेयर कीं, जो बाफ्टा-नॉमिनेशन पाने वाली साल 2013 की ब्रिटिश फिल्म ‘मेट्रो मनीला’ की रीमेक थी.

उन्होंने आगे लिखा, 11 साल पहले उनकी फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ एक रीमेक के रूप में शुरू हुई थी. उन्होंने मूल फिल्म ‘मेट्रो मनीला’ कभी नहीं देखी, न तब, न अब. लोग कहते हैं कि वह फिल्म शायद बेहतर है और हो सकता है, ऐसा हो. लेकिन, ‘सिटी लाइट्स’ को उन्होंने और उनकी टीम ने अपना बनाया. रितेश शाह की स्क्रिप्ट ने उन्हें एक आधार दिया, जिस पर उन्होंने अपनी सच्चाई और भावनाओं को जोड़ा. फिल्म परफेक्ट नहीं थी, लेकिन यह उनके दिल के बहुत करीब थी.”

हंसल मेहता ने बताया, ‘सिटी लाइट्स’ का निर्माण हमने बहुत कम संसाधनों के साथ किया था. टीम में सिर्फ 25 लोग थे, लेकिन सभी में गजब का जुनून था. फिल्म में ट्रेनें सिर्फ कहानी का हिस्सा नहीं थीं, बल्कि असल में भीड़भाड़ वाले रेलवे प्लेटफॉर्म और चलती ट्रेनों में शूटिंग हुई थी.”

उन्होंने आगे बताया, “फिल्म के हर सीन में आवाज को उसी समय रिकॉर्ड किया गया (लाइव साउंड) और शूटिंग के लिए सिर्फ आसपास की रोशनी का इस्तेमाल हुआ. कुछ ट्यूबलाइट्स और एक छोटा जनरेटर ही था, लेकिन कहानी को दिखाने का पूरा जज्बा था. सिनेमैटोग्राफर देव अग्रवाल ने शहर को चमकदार या खूबसूरत नहीं, बल्कि कच्चे और जिंदादिल अंदाज में दिखाया. एडिटर अपूर्वा असरानी ने फिल्म को एडिट करते वक्त उसमें भावनाओं को भी डाला और बिखरे हुए फुटेज को एक कहानी में बदल डाला.”

इसके साथ ही हंसल मेहता ने टीम के हर एक मेंबर की तारीफ की.

‘सिटी लाइट्स’ का निर्देशन हंसल मेहता ने किया था. इस फिल्म को फॉक्स स्टार स्टूडियोज ने महेश भट्ट और मुकेश भट्ट के साथ मिलकर प्रस्तुत किया था. इसमें राजस्थान के एक गरीब किसान की कहानी बताई गई है, जो नौकरी की तलाश में मुंबई आता है. हालांकि, मुंबई पहुंचने पर उसे पता चलता है कि सब कुछ उतना आसान नहीं है, जितना लगता है.

एमटी/एबीएम