विपक्ष पर बरसे चिराग पासवान, विशेष राज्य के दर्जे से लेकर इमरजेंसी तक पर रखी अपनी बात

पटना, 30 जून . लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के उस दावे को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार को इस बार बिहार की जनता उखाड़ फेंकेगी.

चिराग पासवान ने कहा, “इस तरह के दावे पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से किए जाते हैं, लेकिन आखिर में फैसला चुनाव के माध्यम से जनता ही करती है. गत लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष ने बहुत तरह के दावे किए थे. विपक्ष ने कहा था कि एनडीए का खाता नहीं खुलेगा. यह लोग जीरो पर आउट हो जाएंगे, लेकिन हकीकत में परिणाम क्या हुआ? हम लोग अधिकांश सीटों पर जीत का पताका फहराने में सफल रहे. अगर आप मेरी पार्टी की बात करेंगे, तो हम पांच सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रहे और विपक्ष दावा कर रहा था कि हम हाजीपुर में भी हारने जा रहे हैं. राजनीति में इस तरह के दावे आमतौर पर किए जाते हैं, लेकिन निर्णायक भूमिका जनता की होती है. उन्होंने कहा, मैं आपको बता दूं कि इस बार जनता ने तय कर लिया है कि डबल इंजन की सरकार से ही बिहार का विकास हो सकता है.“

उन्होंने आगे कहा, “जिस तरह से केंद्र के चुनाव में बिहार की जनता ने हम लोगों के पक्ष में मतदान किया, ठीक उसी तरह आगामी विधानसभा चुनाव में भी बिहार की जनता हमारा साथ देगी. हालांकि, हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि कुछ सीटों पर हमारा प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, उसके कारणें से हम वाकिफ हैं. उन सीटों पर हुई हार की समीक्षा हो चुकी है. निकट भविष्य में इस तरह का परिणाम न आए, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा. वहीं, मुझे लगता है कि अगर हमने बेहतर तरीके से चुनाव लड़ा होता, तो निसंदेह हम और बेहतर परिणाम लाने में सफल रहते, मगर इस बार बिहार की जनता ने मन बना लिया है कि एनडीए की सरकार का नीतीश कुमार के नेतृत्व में गठन हो.“

वहीं नीतीश कुमार द्वारा केंद्र सरकार से विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करने पर जब चिराग पासवान से सवाल पूछा गया कि क्या वो दबाव की राजनीति कर रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा, “नहीं, बिल्कुल नहीं, वो दबाव की राजनीति नहीं कर रहे हैं, बल्कि उस मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें बिहार की जनता का हित समाहित है. यह मांग तो हम लोगों की हमेशा से ही रही है. बिहार से जुड़ा हर दल जब केंद्र सरकार का हिस्सा बना, तो उसने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की. हम तो खुद इसके पक्षधर हैं. अब अगर हम कहें कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए और अगर ऐसे में कोई कहे कि आप दबाव की राजनीति कर रहे हैं, तो मैं कहता हूं कि नहीं, हम बिल्कुल भी दबाव की राजनीति नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम बिहार की जनता से जुड़े मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष उठा रहे हैं. अब हम यह मांग अपने प्रधानमंत्री से नहीं करेंगे तो किससे करेंगे? हालांकि, हम मानते हैं कि यह विषय नीति आयोग के अधीन आता है.“

अश्विनी चौबे ने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाना चाहिए, जबकि सम्राट चौधरी ने कहा कि अगला चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, तो ऐस में आप अश्विनी के इस बयान को कैसे देखते हैं? इस पर चिराग पासवान ने कहा, “हर व्यक्ति के बयान पर टिप्पणी नहीं कर सकता हूं, लेकिन यहां आपको एक बात समझनी होगी कि अधिकृत बयान किसका होता है? अधिकृत बयान उसका होता है, जो किसी आधिकारिक पद पर आसीन हो. अगर यह बयान पार्टी के अध्यक्ष की ओर से होता, तो इसे गंभीरता से लेना उचित रहता, फिलहाल मैं इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं समझता. पार्टी के कई ऐसे नेता होते हैं, जो कि पार्टी के प्रति अपनी आस्था को ध्यान में रखते हुए ऐसी टिप्पणी कर देते हैं, जिसका मैं सम्मान करता हूं, क्योंकि वो उनकी व्यक्तिगत भावना है, लेकिन अंत में अध्यक्ष की ओर से क्या बयान आता है, वह ज्यादा मायने रखता है.“

वहीं, लालू प्रसाद यादव के उस बयान पर भी चिराग पासवान से सवाल किया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि आपातकाल के दौरान हमें भी जेल में भेजा गया था, लेकिन तब के प्रधानमंत्री ने गाली नहीं दी थी, लेकिन पीएम मोदी ने जिस तरह से गाली दी है, वो निंदनीय है. इस पर चिराग पासवान ने कहा, “मुझे नहीं पता कि आखिर उन्होंने किस मकसद से इस तरह का बयान दिया है, लेकिन मैं एक बात जानता हूं कि वो उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने मेरे पिता के साथ मिलकर आपातकाल का काला दंश झेला है. ये वो लोग हैं, जिन्होंने इमरजेंसी के दौरान खुद यातनाएं झेलीं. वह एक ऐसा दौर था, जब भारत को बंदी बनाने का प्रयास किया जा रहा था. देश के ऊपर तानाशाही थोपने का प्रयास किया जा रहा था. जिसका कोई कभी-भी समर्थन नहीं कर सकता. ऐसे में जब इमरजेंसी को पूरे 50 साल हो चुके हैं, तो यह हमारे लिए जरूरी हो जाता है कि हम अपनी मौजूदा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को भी उस काले अध्याय के बारे में बताएं. उससे सीख लेकर आगे बढ़ने का काम करें. इसके लिए जरूरी है कि इस पर चर्चा हो और निंदा प्रस्ताव लाया जाए. मुझे नहीं लगता है कि आज की तारीख में कोई भी इमरजेंसी का समर्थन करेगा. मैं एक बात कह दूं कि जब स्पीकर इमरजेंसी पर निंदा प्रस्ताव पढ़ रहे थे, तो कांग्रेस को छोड़कर कोई भी विपक्षी दल विरोध नहीं कर रहा था. अखिलेश यादव मेरे सामने बैठे थे. उन्होंने बिल्कुल भी विरोध नहीं किया, क्योंकि उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने भी इमरजेंसी के दौरान कई तरह की यातनाएं झेली थीं. मेरे पिता मुझे बताया करते थे कि कैसे उन्होंने इमरजेंसी के दौरान यातना झेली थीं.“

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