नई दिल्ली, 19 जून . भारतीय रेल को अगर देश की जीवनरेखा और तरक्की का प्रतीक कहा जाए तो ऐसा कहना गलत नहीं होगा. भारतीय रेल ने अपनी यात्रा में कई ऐतिहासिक पड़ाव देखे हैं. भारतीय रेल का इतिहास न केवल समृद्ध और गौरवपूर्ण है बल्कि इसने देश की संस्कृति और विरासत को भी संजोकर रखा हुआ है. इसी विरासत का प्रतीक मुंबई का छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसटी) है, जिसे विक्टोरिया टर्मिनस के रूप में भी जाना जाता है.
20 जून 1887 वो तारीख है जब मुंबई स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) को आम लोगों के लिए पहली बार खोला गया था. इस टर्मिनस से जुड़े इतिहास पर एक नजर डालते हैं.
दरअसल, विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से पहचाने जाने वाले मुंबई के इस ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन का निर्माण 1878 में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में लगभग 10 साल लगे. उस दौरान इस इमारत को बनाने में लगभग 16 लाख रुपए की लागत आई थी, जो उस समय के लिए एक बड़ी राशि थी. इसे ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस ने डिजाइन किया था और इसका उद्घाटन 1887 में रानी विक्टोरिया के शासनकाल की स्वर्ण जयंती के अवसर पर किया गया.
शुरुआत में इसे रानी विक्टोरिया के सम्मान में ‘विक्टोरिया टर्मिनस’ नाम दिया गया था. हालांकि, 1996 में इसे महाराष्ट्र के महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर ‘छत्रपति शिवाजी टर्मिनस’ कर दिया गया और 2017 में इसका नाम ‘छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस’ किया गया. साल 2004 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया.
‘छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस’ (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) की वास्तुकला में विक्टोरियन गोथिक और भारतीय पारंपरिक स्थापत्य का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है. इसमें ऊंचे मेहराब, गुंबद और जटिल नक्काशी शामिल हैं. इमारत का सबसे आकर्षक हिस्सा इसका 330 फीट ऊंचा केंद्रीय गुंबद है, जिसके शीर्ष पर प्रोग्रेस (प्रगति) की मूर्ति स्थापित है. इतना ही नहीं, दीवारों और स्तंभों पर जानवरों, फूलों और भारतीय पौराणिक प्रतीकों की जटिल नक्काशी की गई है. रंग-बिरंगे कांच की खिड़कियां इमारत को एक शाही लुक देती हैं.
भारतीय रेलवे के स्वर्णिम युग का गवाह बनी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सम्मानित यह ऐतिहासिक इमारत मुंबई की धड़कन और सांस्कृतिक पहचान बनी. हालांकि, इस इमारत ने 26 नवंबर 2008 का एक काला दिन भी देखा, जब मुंबई में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. आतंकियों ने इस स्टेशन को भी निशाना बनाया था, जिसमें कई लोगों की जान गई थी.
1887 में इसके उद्घाटन से लेकर आज तक, यह मुंबई की धड़कन बना हुआ है, जहां से न केवल यात्री रेलवे का सफर कर अपने गंतव्य तक जाते हैं, बल्कि इतिहास और कला के प्रेमियों को भी यह अपनी ओर खींचता है.
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एफएम/जीकेटी