New Delhi, 7 जुलाई . देश के नौवें Prime Minister चंद्रशेखर को भारतीय राजनीति में “युवा तुर्क” के नाम से जाना जाता है. उनकी सादगी, साहस और सिद्धांत आधारित राजनीति ने उन्हें देश के इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया. मात्र 52 सांसदों के समर्थन के साथ 10 नवंबर 1990 को Prime Minister बनने वाले चंद्रशेखर का जीवन प्रेरणा का प्रतीक है, जो बताता है कि दृढ़ संकल्प और निष्ठा के बल पर असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे चंद्रशेखर का बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता. उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में हुई, और बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की.
समाजवादी विचारधारा से प्रभावित चंद्रशेखर ने युवावस्था में ही सामाजिक न्याय और समानता के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी. वह 1950 के दशक में समाजवादी आंदोलन से जुड़े और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के माध्यम से अपनी Political यात्रा शुरू की. उनकी स्पष्टवादिता और निर्भीकता ने उन्हें जल्द ही युवा नेताओं में एक अलग पहचान दी. साल 1962 में वह बलिया से पहली बार Lok Sabha के लिए चुने गए और तब से भारतीय राजनीति में उनकी उपस्थिति लगातार मजबूत होती गई.
साल 1960 और 1970 के दशक में चंद्रशेखर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और “युवा तुर्क” के रूप में उभरे. यह वह दौर था, जब उन्होंने गरीबों और वंचितों के अधिकारों के लिए जोरदार आवाज उठाई. उनकी समाजवादी नीतियों और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे कदमों के समर्थन ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाया. हालांकि 1975 में आपातकाल के दौरान चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध किया और जेल में रहे. इस कठिन समय में भी सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा अडिग रही.
साल 1977 में आपातकाल के बाद चंद्रशेखर ने जनता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस दौरान उन्होंने कैबिनेट मंत्री का पद ठुकरा दिया. जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक तमिलनाडु के कन्याकुमारी से दिल्ली के राजघाट तक पदयात्रा की. दिसंबर 1995 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार दिया गया.
तमाम सियासी उथल-पुथल के बीच 10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर ने देश के आठवें Prime Minister के रूप में शपथ ली. उनका कार्यकाल केवल सात महीने का रहा. Prime Minister के तौर पर उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति के सबसे अस्थिर दौरों में से एक था. उस समय देश आर्थिक संकट, सामाजिक अशांति और Political अनिश्चितता से जूझ रहा था.
उनकी Government को कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर निर्भर रहना पड़ा, जिसने उनकी नीतियों को लागू करने में कई चुनौतियां खड़ी की. चंद्रशेखर ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में कई निर्णायक कदम उठाए. उनके कार्यकाल में तमिलनाडु में करुणानिधि की Government द्वारा लिट्टे को कथित समर्थन की एक रिपोर्ट के आधार पर राज्य Government बर्खास्त कर दी गई. इसके अलावा उन्होंने आर्थिक सुधारों की नींव रखी, जो बाद में 1991 में व्यापक रूप से लागू हुई. उन्होंने हमेशा सत्ता की चमक से परे जनता की सेवा को प्राथमिकता दी. राम मंदिर के मुद्दे पर उन्होंने हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों को एक मंच पर लाने की कोशिश की, लेकिन उनका यह प्रयास असफल रहा.
चंद्रशेखर की Government पर 1990-91 में पूर्व Prime Minister राजीव गांधी की जासूसी कराने का आरोप लगा था. इन आरोपों के कारण कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे चंद्रशेखर की जनता दल (सोशलिस्ट) Government अल्पमत में आ गई. इसके परिणामस्वरूप चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को Prime Minister के पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी Government मात्र सात महीने ही सत्ता में रही.
उनकी निर्भीकता, स्पष्टवादिता और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण आज भी नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. 8 जुलाई 2007 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत भारतीय राजनीति में जीवित है. चंद्रशेखर का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चाई और साहस के साथ कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है. उनकी कहानी न केवल एक राजनेता की, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व की है, जिसने अपने मूल्यों को कभी नहीं छोड़ा.
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एकेएस/एकेजे