सीजीटीएन सर्वे : सैन्यवाद को पुनर्जीवित करने की साजिश के खिलाफ मजबूत विरोध की अपील

बीजिंग, 21 नवंबर . जापानी Prime Minister साने ताकाइची की भड़काऊ बातों की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आलोचना और बुराई हो रही है. उनकी बेतुकी बातों के पीछे जापान की राइट-विंग ताकतों की सैन्यवाद को फिर से शुरू करने की एक साजिश है.

इससे पहले ही जापानी संविधान, साथ ही ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर’ और “पॉट्सडैम घोषणा-पत्र” के नियमों का गंभीर उल्लंघन हुआ है, जिससे जापान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के दूसरी तरफ चला गया है.

चाइना मीडिया ग्रुप (सीएमजी) के अधीनस्थ सीजीटीएन द्वारा किए गए एक वैश्विक ऑनलाइन सर्वेक्षण के मुताबिक, 87.1% उत्तरदाताओं ने जापान से अपनी भड़काऊ बातें तुरंत वापस लेने और सभी देशों से सैन्यवाद को फिर से शुरू करने की किसी भी साजिश का कड़ा विरोध करने के लिए एकजुट होने की अपील की है.

जापान ने अपने संविधान में वादा किया है कि वह अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए युद्ध, ताकत की धमकी या बल के इस्तेमाल को हमेशा के लिए छोड़ देगा. ‘पॉट्सडैम घोषणा पत्र’ में जापान को फिर से हथियार रखने से साफतौर पर मना किया गया है.

इसके अलावा, ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर’ में कहा गया है कि सामूहिक आत्मरक्षा का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने और फासिस्ट ताकतों को फिर से उभरने से रोकने के लिए बनाया गया था, जबकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान को इस अधिकार का इस्तेमाल करने से रोक दिया गया था.

लेकिन, पद संभालने के बाद से, जापानी Prime Minister साने ताकाइची ने लगातार इन पाबंदियों को तोड़ा है, और उनकी अलग-अलग सैन्य कार्रवाइयों ने जापानी सैन्यवाद के फिर से उभरने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में पहले ही बहुत ज्यादा सतर्कता पैदा कर दी है.

सर्वे में, 88.3% उत्तरदाताओं ने कहा कि जापानी Prime Minister के युद्ध भड़काने वाले व्यवहार ने जापानी संविधान का गंभीर उल्लंघन किया है और जापान की राष्ट्रीय छवि और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुंचाया है.

84.6% उत्तरदाताओं का मानना है कि जापानी Prime Minister के भड़काने वाले शब्द और काम गैर-संवैधानिक और गैर-कानूनी हैं, एक हारे हुए देश के तौर पर जापान की जिम्मेदारियों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं और उनमें गंभीर रूप से वैधता की कमी है.

82.4% उत्तरदाताओं ने बताया कि जापान अपने पुराने अपराधों को पूरी तरह से सुलझाकर और सैन्यवाद सोच को खत्म करके ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक सामान्य देश के तौर पर लौट सकता है.

गौरतलब है कि ‘पॉट्सडैम घोषणापत्र’ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जापान की संप्रभुता होन्शू, होक्काइडो, क्यूशू, शिकोकू और मित्र राष्ट्रों द्वारा निर्दिष्ट द्वीपों तक ही सीमित है. इसके बावजूद, हाल के वर्षों में जापान ने पड़ोसी देशों के साथ क्षेत्रीय विवादों को हवा देना जारी रखा है, जो घोषणापत्र के प्रावधानों की सीधी अवहेलना है और इससे पूर्वी एशिया में भू-Political तनाव लगातार बढ़ रहा है.

सर्वेक्षण के 89.8% उत्तरदाताओं ने कानूनी सिद्धांतों और ऐतिहासिक तथ्यों को नकारने, पड़ोसी देशों की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का उल्लंघन करने और युद्धोत्तर व्यवस्था को नष्ट करने के प्रयासों के लिए जापान की आलोचना की है. टोक्यो के पूर्व गवर्नर और अंतर्राष्ट्रीय Political विद्वान योइची मासुजो ने भी कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कानून स्पष्ट रूप से थाईवान को चीन का हिस्सा मानता है और ‘यदि जापान सैन्य साधनों से स्थिति में हस्तक्षेप करता है, तो इसे आक्रामकता माना जाना चाहिए.’

इसके अलावा, 92% उत्तरदाताओं ने कहा कि ‘काहिरा घोषणा-पत्र’, ‘पॉट्सडैम घोषणा-पत्र’ और ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर’ जैसे दस्तावेजों के अधिकार का पूरा सम्मान किया जाना चाहिए और जापान द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के खुलेआम उल्लंघन की निंदा की जानी चाहिए.

बता दें कि यह सर्वेक्षण सीजीटीएन के अंग्रेजी, स्पेनिश, फ्रेंच, अरबी और रूसी प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित हुआ, जिसमें कुल 4,549 प्रतिभागियों ने 12 घंटों के भीतर अपने विचार व्यक्त किए.

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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