मुंबई, 22 फरवरी . उपभोक्ता मामलों के विभाग ने भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के सहयोग से शराब जैसी प्रतिबंधित श्रेणियों में उत्पादों को बढ़ावा देने वाले सरोगेट विज्ञापनों की समस्या को सामूहिक रूप से हल करने के लिए एक हितधारक परामर्श जारी किया.
ऐसे विज्ञापन उपभोक्ता अधिकारों को कमजोर करते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संभावित खतरा पैदा करते हैं.
उपभोक्ता मामलों के विभाग में सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि प्रतिबंधित श्रेणियों में उत्पादों को बढ़ावा देने वाले सरोगेट विज्ञापन उपभोक्ता अधिकारों को कमजोर करते हैं और इसके गंभीर प्रभाव हो सकते हैं.
उद्योगों में सरोगेट विज्ञापनों के प्रसार को प्रतिबंधित करने की तत्काल जरूरत है. यदि संबंधित प्रतिबंधित उद्योग इस दिशानिर्देश का पालन करने और मौजूदा कानूनों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो और कठोर कार्रवाई की जाएगी.
सिंह ने कहा, “हम इस उभरते मुद्दे से निपटने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उपभोक्ता मामलों के विभाग ने अत्यंत स्पष्टता के साथ अपने रुख की पुष्टि की कि सरोगेट विज्ञापन में किसी भी निरंतर भागीदारी को माफ नहीं किया जाएगा. यह रेखांकित किया गया कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की जाएगी.”
परामर्श में मुख्य चर्चा बिंदुओं को इस प्रकार रेखांकित किया गया :
* ब्रांड एक्सटेंशन और विज्ञापित प्रतिबंधित उत्पाद या सेवा के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए
* विज्ञापन की कहानी या दृश्य में केवल विज्ञापित उत्पाद को दर्शाया जाना चाहिए, न कि किसी भी रूप में निषिद्ध उत्पाद को
* विज्ञापन में प्रतिबंधित उत्पादों का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संदर्भ नहीं होना चाहिए
* विज्ञापन में प्रतिबंधित उत्पादों को बढ़ावा देने वाली कोई भी बारीकियां या वाक्यांश नहीं होने चाहिए
* विज्ञापन में प्रतिबंधित उत्पादों से जुड़े रंग, लेआउट या प्रस्तुतियों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए
* विज्ञापन में अन्य उत्पादों का विज्ञापन करते समय निषिद्ध उत्पादों के प्रचार के लिए विशिष्ट स्थितियों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए
परामर्श में 2022 में भ्रामक विज्ञापनों और भ्रामक विज्ञापनों के समर्थन की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश भी शामिल किए गए और सरोगेट विज्ञापन से निपटने के लिए प्रभावी रणनीतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए उद्योग हितधारकों, नियामक निकायों और विशेषज्ञों की एक श्रृंखला के लिए सरोगेट विज्ञापन की एक सटीक परिभाषा पेश की गई.
मुख्य चर्चाएं पारदर्शिता बढ़ाने, प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करने और जिम्मेदार विज्ञापन प्रथाओं को बढ़ावा देने के इर्द-गिर्द घूमती रहीं.
परामर्श में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी), सूचना और प्रसारण मंत्रालय और ट्रेडमार्क प्राधिकरण सहित सरकारी निकायों के प्रमुख हितधारक शामिल थे, जिन्होंने ऐसे सरोगेट विज्ञापनों को विनियमित करने के तरीके पर अपने विचार साझा किए.
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