महाकुंभ के असली पात्र वह लोग हैं, जिनका न किसी ट्रेन में रिजर्वेशन है, न कुंभ में कोई तय ठौर
लखनऊ, 1 फरवरी . लखनऊ से करीब 300 किलोमीटर दूर, गोरखपुर के बांसगांव तहसील स्थित मेरे गांव सोनइचा से रमेश का फोन आता है. वह खेतीबाड़ी के लिए खाद, पानी और इसमें लगी मजदूरी की बात करते हैं. फिर बड़े संकोच से कहते हैं, “प्रयागराज जाना है. महाकुंभ नहाने. खाद और मजदूरी के अलावा हमारे … Read more