भारतीय समाज में स्त्री विमर्श की आधार, जिनकी आत्मकथा ने ‘सोच’ पर उठाए सवाल

नई दिल्ली, 19 सितंबर . भारतीय समाज में स्त्रियों को लेकर कई विरोधाभास हैं. एक पुरुष लेखक के दृष्टिकोण से स्त्रियों का स्वरूप सच्चाई से कुछ-कुछ अलग है. लेकिन, स्त्रियों को एक स्त्री ही समग्रता से समझ सकती है. यही काम प्रभा खेतान ने किया. उन्होंने स्त्रियों के हर उस रूप को खुद के अनुसार … Read more

जयंती विशेष: असित हालदार रवीन्द्रनाथ टैगोर के ‘नाती’ जिनकी कूची ने रची कहानियां

नई दिल्ली, 10 सितंबर, . “तुम चित्रकार ही नहीं कवि भी हो यही कारण है कि तुम्हारी तूलिका से रस धारा बहती है, तुम्हारी चेतना ने मिट्टी में भी प्राण फूंक दिए हैं.” गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के यह शब्द उस रचनाकार के लिए हैं जिसने अपनी कूची के जरिए कहानियां रची. बीसवीं सदी का ऐसा … Read more

जब कलम से निकले शब्द किन्नरों के दर्द से ‘स्याह’ हो पन्नों पर उभरे, साहित्य के सूरमा भी कराह उठे

नई दिल्ली, 10 सितंबर . समाज को साहित्य और साहित्य को समाज कैसे एक-दूसरे से जोड़ता है और कैसे एक-दूसरे के बीच यह सामंजस्य बिठाता है. यह साहित्यिक रचनाओं से साफ पता किया जा सकता है. समाज में समानता-असमानता, उतार-चढ़ाव, हानि-साभ, जीवन-मरण, अपना-पराया, स्त्री-पुरुष, अच्छा-बुरा सबके चित्रण का सबसे सशक्त जरिया अगर कुछ है तो … Read more

शिवाजी सावंत: जिनके पहले ही उपन्यास ‘मृत्युंजय’ ने रचा कीर्तिमान, अंगराज कर्ण की कहानी बयां कर हो गए अमर

नई दिल्ली, 31 अगस्त . महाभारत का कर्ण कुछ अलग ही था. सूर्य कवच और कुंडल वाला महा दानवीर जिसने जीवन में बहुत कुछ सहा. जो कुंती के परित्यक्त पुत्र ने सहा उसकी गाथा को शिवाजी सांवत ने एक उपन्यास का आकार दे दिया. मराठी कृति का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और आज भी … Read more

ब्रिटिश सरकार ने मुंशी प्रेमचंद की इस रचना पर लगाया था बैन, ऐसे मिला उपन्यास सम्राट का नाम

नई दिल्ली, 31 जुलाई . देश और दुनिया में जब-जब हिंदी साहित्य की बात होगी तो जहन में सबसे पहला नाम मुंशी प्रेमचंद का आएगा. उन्होंने अपने उपन्यास से न सिर्फ समाज को जागरूक करने का काम किया बल्कि अपने लेखन से हिंदी भाषा को भी नई दिशा दी. हिंदी साहित्य के महान लेखक और … Read more