‘जज के घर नकदी’ : हरीश साल्वे बोले – इस तरह के आरोप न्यायपालिका में लोगों के विश्वास के डिगा देते हैं (आईएएनएस साक्षात्कार)

नई दिल्ली, 21 मार्च . दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जुड़े घर में कथित नकदी प्रकरण की पृष्ठभूमि में, पूर्व सॉलिसिटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने शुक्रवार को इन दावों पर आश्चर्य व्यक्त किया. उन्होंने से बात करते हुए कहा कि इस तरह के आरोप न्यायपालिका में जनता के विश्वास को डिगा देते हैं. उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से जुड़े नवीनतम प्रकरण को चेतावनी की घंटी बताते हुए कहा कि न्यायिक नियुक्ति की जो प्रणाली “आज हमारे पास है, वह बेकार है.”

साक्षात्कार के कुछ अंश इस प्रकार हैं :

: क्या आपको लगता है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर पर नकदी से संबंधित आरोपों ने न्यायपालिका में जनता का विश्वास हिला दिया है?

हरीश साल्वे : जब मैंने यह खबर पढ़ी तो मैं स्तब्ध रह गया. अगर इससे न्यायपालिका में मेरा विश्वास डगमगाता है, तो निश्चित रूप से इससे न्यायपालिका में आम आदमी का विश्वास भी डगमगाता है.

: क्या न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने के कॉलेजियम के फैसले ने इस साजिश को और हवा दी है?

हरीश साल्वे : मेरा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि इस घटना से तबादले का कोई लेना-देना नहीं है. ठीक है. यह सच हो सकता है या सच नहीं भी हो सकता है, लेकिन यह जनता के लिए है. सुबह से हमने जो कुछ भी सुना है, उस पर विश्वास करना मुश्किल है. मुझे लगता है कि अब आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि उनका तबादला निलंबित कर दिया जाए और जांच का आदेश दिया जाए.

: क्या उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में ही रहना चाहिए और काम करना जारी रखना चाहिए?

हरीश साल्वे : मुझे यकीन है कि वह कुछ दिन की छुट्टी लेंगे. सुप्रीम कोर्ट को मामले में जांच का आदेश देना चाहिए. और मैं एक क्रांतिकारी सुझाव दे रहा हूं, सुप्रीम कोर्ट को एक न्यायाधीश और दो प्रतिष्ठित बाहरी लोगों की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक समिति बनानी चाहिए, जो मामले की जांच करे… यह एक बहुत ही बुनियादी तथ्य है.

: अगर आरोप सच साबित होते हैं, तो क्या कार्रवाई की जानी चाहिए?

हरीश साल्वे : क्या उनके घर से कोई पैसा बरामद हुआ था? फायर चीफ का कहना है कि कोई पैसा बरामद नहीं हुआ. अगर उनके घर से वाकई पैसा बरामद हुआ था, तो समिति उन्हें दोषी पाएगी… और फिर देश का कानून अपना काम करेगा. लेकिन, अगर आरोप सच नहीं हैं, तो इन रिपोर्टों को किसने प्लांट किया, इसकी पूरी तरह से जांच की जरूरत है.

: क्या आपको लगता है कि अगर आरोप सच साबित होते हैं, तो क्या स्थिति महाभियोग प्रस्ताव जैसी होगी?

हरीश साल्वे : सिर्फ महाभियोग नहीं. मुझे यकीन है कि अगर स्वतंत्र जांच में उन पर आरोप साबित होते हैं तो वह इस्तीफा दे देंगे. आप कह रहे हैं कि इसमें बहुत सी खामियां हैं, बहुत से ग्रे एरिया हैं? ग्रे नहीं, ग्रे कुछ भी नहीं है. अभी सब कुछ काला है. एक तरफ, अखबार आपको कानूनी पेशे के मेरे साढ़े चार दशकों की सबसे बदसूरत कहानी से जगाते हैं. मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी किसी हाई कोर्ट जज के घर से नकदी बरामद होने की इतनी बदसूरत कहानी सुनी है. मैं आपको बता दूं कि जस्टिस वर्मा सबसे वरिष्ठ जजों में से एक हैं. वह जज जिनकी मैं हमेशा प्रशंसा करता रहा हूं. और जब मैंने यह खबर पढ़ी तो मैं स्तब्ध रह गया. इसलिए, अगर यह न्यायपालिका में मेरे विश्वास को हिलाता है, तो निश्चित रूप से यह न्यायपालिका में आम आदमी के विश्वास को हिलाता है.

: तो, क्या यह फिर से जजों की नियुक्ति में न्यायिक प्रधानता के बारे में बहस को पुनर्जीवित करेगा?

हरीश साल्वे : बिल्कुल. इस तरह की घटनाएं एक चेतावनी की घंटी हैं कि आज जो व्यवस्था है वह बेकार है. यह उस कार्य के बराबर नहीं है, जिसके लिए हम तैयार हैं, हम बहुत ही अशांत और अलग समय में रह रहे हैं. आज, यह 1960, 70 और 80 का दशक नहीं है, जब खबर आने में कई-कई सप्ताह लग जाते थे. आज, यह सोशल मीडिया का युग है. इसे वीडियो पर लिया जाता है, 15 मिनट में जारी किया जाता है. दुनिया जानती है कि 15 मिनट पहले आपके घर में क्या हुआ था. हां, पांच मिनट पहले, दो मिनट पहले. तो, आप जानते हैं, यह बहुत ही अलग है, और फिर खबर वायरल हो जाती है. इसलिए हमें इससे निपटना होगा. हमें इन समयों के अनुरूप जीना होगा.

: क्या आपको सिस्टम में बदलाव की जरूरत लगती है?

हरीश साल्वे : बिल्कुल. और हमें इन सब से निपटने के लिए एक ज्यादा दृढ़ प्रणाली, एक ज्यादा मजबूत प्रणाली की जरूरत है. और आज, जब भारत ही नहीं दुनिया की सभी संस्थाएं – डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, मैं न्यायपालिका की बात नहीं सुनूंगा – दबावों और खींचतान के कारण बहुत ज्यादा तनाव में हैं, मुझे लगता है कि लोकतंत्र में न्यायपालिका समान रूप से महत्वपूर्ण संस्था है. क्या हम बिना कार्यशील न्यायपालिका के रह सकते हैं? हम नहीं रह सकते. और अगर हम बिना कार्यशील न्यायपालिका के नहीं रह सकते, तो हमें इसे मजबूत करना होगा.

: क्या यह प्रकरण कम से कम यह सवाल उठाता है कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली में कोई अंतर्निहित जांच नहीं है?

हरीश साल्वे : यह याद दिलाता है कि हमें चर्चा को फिर से शुरू करने की जरूरत है. और मैं देखता हूं कि जिन 500 लोगों को हमने वोट देकर सत्ता में भेजा है, उन्हें अपने राजनीतिक मतभेदों को अलग रखना होगा. यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर उन्हें एक साथ बैठकर विचार करना होगा, संसद में भेजे गए 500 लोगों की सामूहिक बुद्धि को एक ढांचे के साथ सामने आना होगा. यह एक अस्तित्वगत संकट है. आपको इस संस्था को बचाना होगा.

: इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन कह रहा है कि वे नहीं चाहते कि न्यायमूर्ति वर्मा को उस न्यायालय में वापस भेजा जाए. इस पर आपका क्या कहना है?

हरीश साल्वे : अगर आरोप सही हैं, तो तबादला गलत है. अगर वह दिल्ली हाई कोर्ट में जज बनने के लायक नहीं है, तो इलाहाबाद में कैसे रहने लायक है? कुछ अदालतों को कूड़ेदान की तरह न समझें… यहां एक समस्या है. हम व्यक्ति को वहां भेजते हैं. देखिए, यह अलग बात है कि कभी-कभी किसी का रिश्तेदार कोर्ट में प्रैक्टिस करता है. फिर जनता की धारणा को साफ करने के लिए आप जज का तबादला कर देते हैं. यह अलग बात है. यह जज पर कोई आक्षेप नहीं है. यह सिर्फ इस सिद्धांत पर खरा उतरना है कि न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि न्याय होता दिखना भी चाहिए.

: और न्यायिक नियुक्तियों के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग स्थापित करने के अब हटाए गए प्रस्ताव के बारे में क्या कहना है, जो कॉलेजियम प्रणाली की जगह ले सकता है? इस प्रस्ताव को 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

हरीश साल्वे : कुछ छोटी-मोटी आलोचनाएं थीं. इसे ठीक किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने दो सिद्धांत निर्धारित किए, जिन्हें मैं बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका तभी स्वतंत्र हो सकती है, जब न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीशों द्वारा की जाए. मैं ऐसा नहीं मानता.

न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा जिन्होंने 1993 में कॉलेजियम प्रणाली बनाई थी, उन्होंने कार्यपालिका बनाम न्यायपालिका के संदर्भ में कभी यह नहीं कहा कि ‘न्यायाधीशों को न्यायाधीशों का चयन करना चाहिए’. उन्होंने उस संदर्भ में ऐसा कभी नहीं कहा. न्यायमूर्ति वर्मा ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अगर मैं कॉलेजियम प्रणाली के काम करने के तरीके को देखता हूं, तो मुझे अपने फैसले पर खेद है.

दूसरा प्रस्ताव यह है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए गठित समिति में कानून मंत्री कभी नहीं हो सकते. मैं इससे सहमत नहीं हूं. लोकतंत्र में कार्यपालिका एक महत्वपूर्ण हितधारक है. यह कहना एक बात है कि सरकार यह नहीं कह सकती कि न्यायाधीश कौन होगा, लेकिन यह कहना दूसरी बात है कि समिति में कानून मंत्री का होना एक दोष है.

: अगर इस घर में नकदी प्रकरण में आरोप साबित नहीं होते हैं, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

हरीश साल्वे : यह कितनी दुखद बात है. अगर यह आरोप झूठा है, तो एक बहुत अच्छे न्यायाधीश की छवि खराब हो रही है. और अगर यह चेतावनी पर्याप्त नहीं है, तो मुझे नहीं पता कि और क्या होगा. मैं बहुत सख्त कार्रवाई की मांग करूंगा.

एकेजे/