जिनेवा, 1 अक्टूबर . बांग्लादेश के चटगांव हिल्स में मूल निवासियों के खिलाफ हुई हिंसा की गूंज यूएन में भी सुनाई दी. हाल ही में हुई कुछ हिंसक घटनाओं ने दक्षिण एशियाई देश में पिछड़े और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर विश्व नेताओं के बीच चिंता पैदा कर दी है.
कई मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना पर चिंता जताते हुए अंतरिम Government से दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आग्रह किया है.
बांग्लादेशी सुरक्षा बलों द्वारा की गई व्यापक आगजनी, लूटपाट और अंधाधुंध गोलीबारी में कहग्राचारी जिले में कई स्थानीय लोगों के मारे जाने और घायल होने के कुछ ही दिनों बाद ये मुद्दा वैश्विक मंच से उठाया गया है.
यह घटना 23 सितंबर को हुई थी, जब लोग एक मरमा स्कूली छात्रा के लिए न्याय की मांग कर रहे थे, जिसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. स्थानीय लोगों ने दोषियों की गिरफ्तारी और मुकदमा चलाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था.
यह मुद्दा जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 60वें सत्र में भी उठाया गया था.
Wednesday को इंटरनेशनल फोरम फॉर सेक्युलर बांग्लादेश ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के बाहर प्रदर्शनी भी आयोजित की, जिसमें दक्षिण एशियाई राष्ट्र के बिगड़ते मानवाधिकार रिकॉर्ड पर दुनिया का ध्यान खींचा गया.
यह दो दिवसीय पोस्टर प्रदर्शनी मानवाधिकार परिषद के 60वें सत्र के साथ-साथ चली.
30 पैनलों के माध्यम से, इसने उग्र कट्टरवाद, सांप्रदायिक हिंसा और अल्पसंख्यक उत्पीड़न, प्रेस की स्वतंत्रता के दमन, मॉब टेररिज्म और यौन शोषण जैसे गंभीर मुद्दे उठाए.
New Delhi स्थित थिंक टैंक राइट्स एंड रिस्क्स एनालिसिस ग्रुप के निदेशक सुहास चकमा ने स्वदेशी लोगों के नरसंहार की ओर ध्यान आकर्षित किया.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र में चकमा ने कहा कि 23 सितंबर को सामूहिक बलात्कार की शिकार एक स्वदेशी लड़की के लिए न्याय की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर बांग्लादेशी सेना ने अंधाधुंध गोलीबारी की. फायरिंग में तीन लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए.
उन्होंने आगे कहा कि पिछले वर्ष बांग्लादेश में 637 मॉब लिंचिंग हुईं, 878 पत्रकारों को निशाना बनाया गया, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2,485 हिंसक घटनाएं हुईं, और 5 लाख से अधिक Political विरोधियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए.
चकमा ने कहा, “मुहम्मद यूनुस की अंतरिम Government ने 7 नवंबर 2024 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सभी सदस्यों को बर्खास्त कर दिया, क्योंकि आयोग ने अक्टूबर 2024 के अपने न्यूजलेटर में मारपीट, बलात्कार, Political उत्पीड़न, Political नेताओं पर हमले और अन्य हिंसक कृत्यों में वृद्धि को उजागर किया था. आज तक, बांग्लादेश के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नए सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई है, जो ‘राज्य की जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही का एक अस्वीकार्य उदाहरण’ है.”
उन्होंने आगे कहा, “दुर्भाग्य से, 8 नवंबर 2024 को मेरे शिकायत दर्ज कराने के बाद, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों का वैश्विक गठबंधन, आयोग के अस्तित्व में न होने के कारण बांग्लादेश के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को निलंबित करने के लिए कदम उठाने में विफल रहा.”
चकमा ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से आग्रह किया कि वह बांग्लादेश से देश में बढ़ते मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सभी सदस्यों को तुरंत नियुक्त करने का आग्रह करे.
इससे पहले 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को संबोधित करते हुए, ग्लोबल ह्यूमन राइट्स डिफेंस (जीएचआरडी) की संयुक्त राष्ट्र-यूरोपीय संघ मानवाधिकार अधिकारी, शार्लोट जेहरर ने बांग्लादेश में जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों की मानवाधिकार स्थिति पर चिंता व्यक्त की और पिछले वर्ष अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की गई 2,400 से ज्यादा हिंसक घटनाओं का हवाला दिया.
उन्होंने कहा कि इस तरह के हमले खासकर चटगांव हिल्स में होते हैं. यहां स्थानीय लोगों और जातीय अल्पसंख्यकों के साथ-साथ देश भर में हिंदू और ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ भी किए जाते हैं.
जेहरर ने कहा, “पूजा स्थलों और घरों पर हमले, बलात्कार जैसी लिंग आधारित हिंसा, मनमानी गिरफ्तारियां और झूठे ईशनिंदा के आरोप, जमीन हड़पना और जबरन विस्थापन, अल्पसंख्यक पेशेवरों का जबरन इस्तीफा और किशोरों और युवाओं का जबरन धर्मांतरण जैसे मामले हमारे सामने आए हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “हम अन्यायपूर्ण तरीके से हिरासत में लिए गए अल्पसंख्यक नेताओं और कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए कानूनों को बनाए रखने या उनमें सुधार करने और हिंसा और भेदभाव की सभी कथित घटनाओं की स्वतंत्र जांच की मांग करते हैं.”
उन्होंने आगे आग्रह किया कि बांग्लादेश में स्वदेशी लोगों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के फैक्ट-फाइंडिंग मिशन सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को कड़ी निगरानी रखनी चाहिए.
–
केआर/