![]()
New Delhi, 26 नवंबर . अगर संगीत की दुनिया में किसी ने गिटार को साधन से ज्यादा एक जादू की छड़ी सरीखा इस्तेमाल किया, तो वो थे जिमी हेंड्रिक्स. उनके बजाने का अंदाज ऐसा था कि जैसे किसी तूफान ने तारों को छुआ हो—बिजली-सा झटका, धुएं-सी गर्मी और एक गहरी भावनात्मक चमक. वे सिर्फ गाने नहीं बजाते थे; वे मंच पर आग लगा देते थे, कभी सचमुच और कभी देखने वालों के जेहन में!
उनकी कहानी किसी सीधी लाइन की तरह नहीं—बल्कि टेढ़ी-मेढ़ी बिजली की तरह है, जो जहां गिरती है, अपनी छाप छोड़ जाती है.
जिमी हेंड्रिक्स का जन्म 27 नवंबर 1942 को सिएटल में हुआ था. जिमी, वॉशिंगटन के साधारण माहौल में पले-बढ़े, सेना में भी भर्ती हुए लेकिन निकाल दिए गए क्योंकि उनका मन कहीं और अटका था—वो था संगीत और गिटार. उन्होंने शुरुआती दिनों में कई छोटे-बड़े कलाकारों के साथ काम किया, लेकिन मंच पर जब वे गिटार थामे आते और उंगलियों से स्ट्रिंग्स छेड़ते तो साफ दिख जाता था कि यह इंसान किसी और ही दिशा में जाने वाला है.
उनका अंदाज नियमों को तोड़ने वाला था. दाहिने हाथ के लिए बनी गिटार को बाएं हाथ से बजाना, दांतों से गिटार चलाना, हवा में चक्कर लगाते हुए रिफ निकालना—ये सब किसी पागल प्रयोग की तरह लगता था, पर उस “पागलपन” ने ही उन्हें महान बनाया. वे तकनीक का नहीं, जुनून का संगीत बजाते थे; नोट्स उनकी उंगलियों से नहीं, उनकी रूह से निकलते थे.
मंच पर उनकी उपस्थिति इस कदर मशहूर हुई कि विश्व भर में गिटार बजाने वालों की नई पीढ़ी उनके अंदाज की दीवानी हो गई. India में भी रॉक संगीत के शुरुआती दौर में कई युवा बैंड्स, विशेषकर 70 और 80 के दशक में, परवान चढ़े और हेंड्रिक्स के लंबे सोलो, डिस्टॉर्शन और मंचीय ऊर्जा से प्रभावित हुए. Mumbai और दिल्ली के क्लबों में बजने वाले शुरुआती रॉक एक्ट्स में हेंड्रिक्स की छाप साफ दिखाई देती थी; यहां तक कि बाद में Bollywood के संगीतकारों ने भी उनकी इलेक्ट्रिक गिटार की चमक से प्रेरित होकर कई गानों में वाइल्ड, लंबी इलेक्ट्रिक लीड्स का इस्तेमाल किया.
लेकिन जितनी तेजी से जिमी ऊपर उठे, उतनी ही तेजी से जिंदगी उनकी पकड़ से फिसल गई. प्रसिद्धि की चमक के पीछे थकान, अकेलापन और अंदरूनी संघर्ष छिपे थे. बस 27 साल की उम्र में (18 सितंबर 1970) को वो अचानक दुनिया से चले गए. एक ऐसी विदाई जो आज भी लाखों प्रशंसकों को भीतर से हिला देती है. उनकी मौत रहस्य, भ्रम और अफसोस का मिश्रण थी—कि अगर वे कुछ और साल जीते, तो संगीत कहां तक पहुंच जाता?
मगर शायद ये भी सच है कि कुछ कलाकार पूरी उम्र जीने नहीं आते; वे चमकने आते हैं और फिर उतनी ही तेजी से खो जाते हैं. जिमी हेंड्रिक्स भी ऐसे ही थे. एक टिमटिमाती लौ जिसने रात को उंगलियों पर नचाया और फिर खुद ही बुझ गई.
–
केआर/