नई दिल्ली, 28 फरवरी . नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी ) की रिपोर्ट में दिल्ली की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में गंभीर कुप्रबंधन और वित्तीय लापरवाही को लेकर कई बड़ी खामियों की जानकारी सामने आई हैं. रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पिछले छह वर्षों में स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास और प्रबंधन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं देखी गई हैं.
कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के लिए आवंटित 787.91 करोड़ रुपये में से केवल 582.84 करोड़ का ही इस्तेमाल हुआ था. स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती और वेतन के लिए 52 करोड़ में से 30.52 करोड़ खर्च नहीं किए गए, जिससे कर्मचारियों की कमी समस्या बनी. दवाओं, पीपीई किट और मास्क के लिए 119.85 करोड़ में से 83.14 करोड़ का उपयोग नहीं हुआ, जिससे चिकित्सा आपूर्ति की कमी बढ़ी.
इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने 32,000 नए बिस्तर जोड़ने का वादा किया था, लेकिन केवल 1,357 बिस्तर (4.24 प्रतिशत) ही जोड़े गए. कई अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्धता न होने से कुछ मरीजों को फर्श पर लेटने के लिए मजबूर होना पड़ा था. तीन नए अस्पतालों के निर्माण में विलंब हुआ, जिनकी कुल लागत में 382.52 करोड़ का इजाफा हुआ. इंदिरा गांधी अस्पताल में 5 साल की देरी, बुराड़ी अस्पताल में 6 साल की देरी और एमए डेंटल फेज-2 में तीन साल की देरी हुई. दिल्ली में प्रमुख अस्पतालों और स्वास्थ्य विभागों में 8,194 रिक्तियां हैं. नर्सों में 21 प्रतिशत, पैरामेडिक्स में 38 प्रतिशत और डॉक्टरों की कमी 50-74 प्रतिशत तक है. कुछ अस्पतालों में नर्सों की कमी 73-96 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
वहीं, लोक नायक अस्पताल में सामान्य सर्जरी के लिए 2-3 महीने और बर्न सर्जरी के लिए 6-8 महीने का इंतजार करना पड़ता है. सीएनबीसी अस्पताल में बाल चिकित्सा सर्जरी के लिए 12 महीने का इंतजार है, और 10 जरूरी मशीनें काम नहीं कर रही हैं. राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में 6 ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू बेड और 77 निजी कमरे बेकार पड़े हैं. जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भी 7 ऑपरेशन थिएटर, ब्लड बैंक और 200 सामान्य बेड काम नहीं कर रहे हैं. एलएनएच के सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर में आपातकालीन देखभाल के लिए डॉक्टरों की कमी है, जिससे मरीजों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, 27 अस्पतालों में से 14 में आईसीयू, 16 में ब्लड बैंक, 8 में ऑक्सीजन सप्लाई और 15 में शवगृह की सुविधा नहीं है. सीएटीएस एंबुलेंस में आवश्यक जीवन रक्षक उपकरणों की कमी है, जिससे मरीजों की सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है. मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य निधि का 58.9 प्रतिशत से 93.03 प्रतिशत हिस्सा अप्रयुक्त रहा. सिर्फ 30 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को निःशुल्क आहार और नैदानिक लाभ मिले, और 40.54 प्रतिशत माताओं को प्रसव के 48 घंटे के भीतर छुट्टी दे दी गई. सीपीए (केंद्रीय खरीद एजेंसी) की विफलता के कारण अस्पतालों को 33-47 प्रतिशत आवश्यक दवाएं खुद खरीदनी पड़ीं.
रिपोर्ट के अनुसार, मोहल्ला क्लीनिक की हालत भी अच्छी नहीं है. 21 मोहल्ला क्लीनिक में शौचालय नहीं थे, 15 में बिजली बैकअप नहीं था और 12 में दिव्यांग मरीजों के लिए पहुंच की सुविधा नहीं थी. डिस्पेंसरी में भी बिजली बैकअप, शौचालय और पानी की सुविधा की कमी थी.
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एसएचके/एएस