सत्ता खोने के बाद बीआरएस का पहला शक्ति प्रदर्शन

हैदराबाद, 13 फरवरी . सत्ता खोने के बाद अपने पहले शक्ति प्रदर्शन में, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) कांग्रेस सरकार की ओर से कृष्णा नदी पर परियोजनाओं को कथित तौर पर कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) को सौंपने के विरोध में नलगोंडा में एक सार्वजनिक बैठक कर रही है.

बीआरएस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव सार्वजनिक बैठक को संबोधित करेंगे, इसमें सरकार से कृष्णा और गोदावरी नदी के पानी में राज्य के हितों की रक्षा करने की मांग की जाएगी.

ढाई महीने पहले कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवाने के बाद बीआरएस की यह पहली सार्वजनिक बैठक होगी.

बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के. टी. रामा राव के नेतृत्व में सांसद, विधायक और एमएलसी सहित पार्टी नेता बीआरएस मुख्यालय तेलंगाना भवन से विशेष बसों में नलगोंडा के लिए रवाना हुए.

मुख्य विपक्षी दल ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार राज्य के हितों की हानि के लिए श्रीशैलम और नागार्जुन सागर बांधों का प्रबंधन केआरएमबी को सौंपने पर सहमत हुई है.

बीआरएस ने महबूबनगर, रंगारेड्डी, खम्मम और नलगोंडा सहित कृष्णा बेसिन के अंतर्गत आने वाले जिलों से लोगों को संगठित किया है.

इस बीच, कांग्रेस पार्टी ने बीआरएस के खिलाफ नलगोंडा में एक अनोखा विरोध प्रदर्शन किया. पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए केसीआर की तस्वीर को गुलाबी रंग के तौलिये के साथ एक कुर्सी पर रखा. उन्होंने केसीआर के उस बयान को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सिंचाई परियोजनाओं को पूरा कराने के लिए कुर्सी पर बैठेंगे.

प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि केसीआर ने परियोजनाओं को शुरू करने और राज्य के हितों की रक्षा करने में विफल होकर क्षेत्र के लोगों को धोखा दिया है.

तेलंगाना विधानसभा ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि राज्य सामान्य परियोजनाओं का नियंत्रण केआरएमबी को तब तक नहीं सौंपेगा, जब तक कि राज्य द्वारा रखी गई शर्तें पूरी नहीं हो जातीं.

विधानसभा ने भारत सरकार से सीआरपीएफ को वापस लेने और परियोजना का नियंत्रण तेलंगाना सरकार को सौंपने का भी अनुरोध किया.

सिंचाई मंत्री एन. उत्तम कुमार रेड्डी द्वारा कृष्णा परियोजनाओं पर पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन देने के बाद प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, इसके बाद मैराथन बहस हुई, जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी बीआरएस ने एक-दूसरे पर राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया.

सत्तारूढ़ दल ने आरोप लगाया कि यह बीआरएस ही था जो कृष्णा परियोजनाओं को केंद्र को सौंपने पर सहमत हुआ था और यहां तक कि आंध्र प्रदेश को अवैध परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की अनुमति भी दी थी.

बीआरएस ने दावा किया कि यह प्रस्ताव उसकी पहली जीत है. इसके नेताओं ने कहा कि नलगोंडा में एक विरोध बैठक की घोषणा के बाद सरकार प्रस्ताव पारित करने के लिए आगे आई.

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