New Delhi, 2 अगस्त . बिहार की राजनीति के लिहाज से कटिहार विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है. विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या इस बार भाजपा अपनी परंपरागत जीत को बरकरार रख पाएगी या जनता बदलाव का मूड बना चुकी है? ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से बेहद अहम इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है.
कटिहार केवल एक विधानसभा सीट नहीं है. यह ऐतिहासिक विरासत और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का केंद्र भी है. यह इलाका कभी कोशी अंचल के सबसे बड़े जमींदारों, चौधरी परिवार के अधीन था, जिसके संस्थापक खान बहादुर मोहम्मद बख्श थे. उनके पास अकेले कटिहार में लगभग 15 हजार एकड़ और पूर्णिया में 8,500 एकड़ जमीन थी.
कटिहार जिले का गठन 2 अक्टूबर 1973 को पूर्णिया से अलग कर किया गया था, लेकिन इसका इतिहास इससे कहीं ज्यादा पुराना है. यह क्षेत्र महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा माना जाता है, जब वे मणिहारी में अपनी मणि खो बैठे थे. मुस्लिम शासन के दौरान यह क्षेत्र बख्तियार खिलजी और उसके उत्तराधिकारियों के अधीन रहा और फिर अंग्रेजों के शासन में भी महत्वपूर्ण रहा.
कटिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. यहां धान, जूट, मखाना, केले, मक्का और गेहूं जैसी फसलें होती हैं. यहां दो पुराने जूट मिल कभी औद्योगिक पहचान हुआ करते थे, लेकिन अब लंबे समय से बंद हैं. हालांकि, मखाना प्रोसेसिंग यूनिट्स और धान प्रसंस्करण उद्योग धीरे-धीरे उभर रहे हैं. साथ ही कपड़ा बाजार, दवा व्यवसाय और साइकिल ट्रेडिंग जैसे सेक्टर भी इलाके की आर्थिक गतिविधियों को गति दे रहे हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार कटिहार जिले की आबादी करीब 30.7 लाख है, जिसमें साक्षरता दर मात्र 52.24 फीसदी है. जिले में 16 प्रखंड, 3 उपखंड, 1547 गांव और 3 शहरी निकाय हैं. इतने बड़े जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्र के बावजूद अब तक शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिक विकास की गति धीमी रही है, जो चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है.
कटिहार सीट पर 1957 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ था. तब से अब तक कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव यहां देखने को मिले, लेकिन पिछले दो दशकों से यहां भाजपा का कब्जा बरकरार है. वर्तमान विधायक तार किशोर प्रसाद हैं, जिन्होंने 2020 में जीत दर्ज कर बिहार के उपChief Minister पद तक का सफर तय किया. हालांकि, 2022 में नीतीश कुमार के महागठबंधन में जाने के बाद प्रसाद को इस पद से हटना पड़ा. बावजूद इसके, उनके प्रभाव और संगठन क्षमता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
2025 के विधानसभा चुनाव में कटिहार में मुकाबला भाजपा बनाम महागठबंधन के बीच होने की संभावना है. भाजपा की ओर से एक बार फिर तार किशोर प्रसाद को टिकट मिल सकता है, जो क्षेत्र में मजबूत संगठन और जातीय समीकरणों का लाभ उठाने की स्थिति में हैं. वहीं, राजद, कांग्रेस और जदयू जैसे दल मिलकर इस सीट पर भाजपा को चुनौती देने की तैयारी में हैं. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी इस सीट पर खासा असर डाल सकती है, और विपक्षी दल इसी कार्ड पर दांव लगा सकते हैं.
हालांकि भाजपा का यहां गहराई से जनाधार है, लेकिन स्थानीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, बंद मिलों की बहाली, खराब स्वास्थ्य सेवाएं और किसानों की समस्याएं इस बार चुनावी मूड को प्रभावित कर सकती हैं. यदि विपक्ष इन मुद्दों को सही तरीके से उठाता है और उम्मीदवार चयन में रणनीति अपनाता है, तो मुकाबला कांटे का हो सकता है.
कटिहार विधानसभा सीट इस बार भी सियासी रणभूमि का एक बड़ा केंद्र बनने जा रही है. एक ओर भाजपा अपनी 20 साल की पकड़ को कायम रखने के लिए कमर कस रही है, तो दूसरी ओर महागठबंधन इस सीट को भाजपा से छीनने के लिए हर संभव प्रयास करेगी.
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पीएसके/जीकेटी