बिहार चुनाव : नरपतगंज पर 20 साल से भाजपा का कब्जा, क्या 2025 में बदलेगा समीकरण?

Patna, 3 अक्टूबर . बिहार के अररिया जिले की नरपतगंज विधानसभा सीट पर पिछले 20 साल से भाजपा का दबदबा रहा है. 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी इस मजबूत स्थिति को कायम रखने की कोशिश में है, वहीं राजद-नेतृत्व वाला विपक्षी गठबंधन इस गढ़ को भेदने की कोशिश में जुटा है.

नरपतगंज विधानसभा सीट पर पहली बार चुनाव 1962 में हुए थे और उस दौरान कांग्रेस ने यहां बाजी मारी. 1962 से 1972 तक यहां कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 1977 के चुनाव में इस सीट को जनता दल ने छीन लिया.

इसके बाद 1985 में भाजपा ने पहली बार दस्तक देते हुए जीत हासिल की. हालांकि, 1990 और 1995 में जनता दल ने जीत का परचम लहराया. साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के पास रही, लेकिन 2005 में इस पर राजद ने कब्जा जमाया. हालांकि, उसी साल दोबारा हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से इस सीट को जीत लिया. 2005, 2010, 2015 और 2020 से इस सीट पर भाजपा का झंडा बुलंद है.

चुनाव आयोग के अनुसार 2020 के चुनाव में भाजपा के जयप्रकाश यादव ने राजद के अनिल कुमार यादव को 28,610 वोटों से हराया.

इससे पहले 2015 में राजद ने जदयू के साथ गठबंधन में भाजपा को 25,951 वोटों से हराया था. जदयू ने स्वतंत्र रूप से यह सीट कभी नहीं जीती, लेकिन 2015 और 2020 में गठबंधन सहयोगी रही. भाजपा की मजबूत पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2024 के Lok Sabha चुनाव में उसे बढ़त मिली थी.

2020 के विधानसभा चुनाव में यहां 3,28,546 रजिस्टर्ड मतदाता थे, जिनमें 18.65 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 21.40 प्रतिशत मुस्लिम और 18.90 प्रतिशत यादव समुदाय के थे. 2024 के Lok Sabha चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,44,243 हो गई है.

अररिया जिले का नरपतगंज विधानसभा क्षेत्र कोसी नदी के बाढ़ प्रभावित इलाके में आता है, जो अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और जटिल Political समीकरणों के लिए जाना जाता है. यह क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण है, जहां कृषि आधारित आजीविका और बाढ़ की चुनौतियां इसकी बड़ी पहचान हैं.

नरपतगंज की अर्थव्यवस्था धान, मक्का और जूट की खेती पर टिकी है. कोसी नदी कृषि के लिए वरदान है, लेकिन मानसून में बाढ़ और जलजमाव की समस्या पैदा करती है. क्षेत्र में औद्योगिक या कृषि-आधारित उद्योगों की कमी के कारण आर्थिक ठहराव और युवाओं का पलायन प्रमुख चुनौती है. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी संसाधनों की कमी साफ दिखती है.

एफएम/वीसी