भाजपा ने गिनाई वीर सावरकर की महानता, ध्वस्त हो गया कांग्रेस का दुष्प्रचार अभियान

नई दिल्ली, 26 फरवरी (आईएनएस). 26 फरवरी को भारत के एक महान क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि है. जिन्हें इतना लोकप्रिय होने के बाद भी स्वतंत्र भारत में कांग्रेस सरकार की नीतियों की वजह से युग के एक विवादास्पद स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में दिखाया गया.

वीर दामोदर सावरकर अपने विरोधियों द्वारा हमेशा अपने समय के विभाजनकारी और ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति के रूप में लोगों के सामने पेश किए गए. 2014 से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भारतीय राजनीति में ताकतवर होने और केंद्र की सत्ता में आने के बाद से उन्हें प्रमुखता और प्रासंगिकता मिली.

दामोदर सावरकर आज की राजनीति में अब हर जगह चर्चा का विषय बन गए हैं, जहां 1990 के दशक की शुरुआत में सावरकर की हिंदुत्ववादी विचारधारा और ब्रिटिशों के सामने कथित समर्पण को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे पर निशाना साध रहे थे. वीर सावरकर के बारे में ज्यादा नहीं जानने वाली नई पीढ़ी को भी भाजपा-कांग्रेस के बीच उनको लेकर गहराए विवाद को देखते हुए बहुत कुछ जानने का मौका मिल गया. वीर दामोदर सावरकर दक्षिणपंथी संगठनों के लिए एक अत्यधिक भावनात्मक मुद्दा बन गए हैं, वह ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी हिंदुत्व की विरासत भाजपा की ताकत को मजबूत कर रही है और युवाओं के साथ जुड़ने के नए रास्ते खोल रही है, जबकि कांग्रेस उन्हें ‘खलनायक’ के रूप में पेश कर उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने की हर संभव कोशिश कर रही है और इसके जरिए भगवा राजनीति को समाप्त करने की कोशिश में लगी है.

राहुल गांधी द्वारा पर बीजेपी और आरएसएस को निशाना बनाने के लिए वीर सावरकर को लेकर दिया गया बयान आज की राजनीति में सावरकर की प्रासंगिकता को समझने के लिए काफी है. राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा था कि ”मेरा नाम सावरकर नहीं, मेरा नाम गांधी है. गांधीवादी किसी से माफी नहीं मांगते”.

राहुल ने यह बात तब कही जब उनसे पत्रकारों ने पूछा था कि मोदी के जाति विवाद पर वह माफी मांग कर अपना सांसद का दर्जा बचा सकते थे. सावरकर पर राहुल गांधी के इस बयान के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महाअघाड़ी गठबंधन में भी उथल-पुथल मच गया. उस समय उस गठबंधन की सहयोगी शिवसेना ने उनकी टिप्पणियों पर नाराजगी जताई और चेतावनी दी कि अगर कांग्रेस सावरकर का अपमान करके मराठा गौरव को चोट पहुंचाती रही तो गठबंधन में ‘दरार’ आ जाएगी.

सावरकर को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ सशक्त विद्रोह की योजना बनाने और लोगों को संगठित करने के लिए ब्रिटिश शासन द्वारा 50 वर्ष का दोहरा आजीवन कारावास दिया गया और इसकी उन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी. उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के काला पानी में 7×11 फीट के कमरे में जेल की चारदीवारी में कैद किया गया और कई वर्षों तक कठोर और अमानवीय यातनाओं का सामना करना पड़ा. अपनी कैद की पूरी अवधि के दौरान, सावरकर ने क्रूरता और अमानवीय परिस्थितियों को सहन किया.

कांग्रेस ने वीर सावरकर के साथ-साथ भाजपा पर भी लगातार प्रहार करते हुए बार-बार पार्टी पर धार्मिक ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया. इसमें कहा गया कि सावरकर ने माफी मांगने के लिए अंग्रेजों को कई क्षमा याचिकाएं लिखीं, जबकि भाजपा राष्ट्रवाद का दावा करती है, जिस पार्टी के वह सर्वमान्य नेता रहे हैं.

जबकि, कांग्रेस के सभी आरोपों का खंडन करते हुए बीजेपी की तरफ से कहा जाता रहा है कि भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले राष्ट्रवादी नेताओं की आलोचना करना उनके खिलाफ दुर्व्यवहार करना और उनका अपमान करना गांधी परिवार और कांग्रेस की आदत है.

स्वतंत्रता के बाद, हिंदू महासभा के प्रमुख नेता सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या में उनकी कथित भूमिका को लेकर हर तरफ से भारी आलोचना का सामना करना पड़ा. उन पर बापू की हत्या में साजिशकर्ता का साथ देने का आरोप लगाया गया था, लेकिन बाद में अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया. मामले में क्लीन चिट मिलने के बावजूद कांग्रेस उन पर लगातार हमले करती रही है.

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले सावरकर फिर एक बार राजनीति के केंद्र में हैं. कांग्रेस का दावा है कि सावरकर को लेकर बीजेपी फिर से हिंदुत्व को राजनीतिक एजेंडे के तौर पर गढ़ रही है. हालांकि भाजपा इसको लेकर सामने से इसका जवाब दे रही है और उसके पास इसको खारिज करने के पर्याप्त तथ्य भी हैं. क्योंकि सावरकर स्पष्ट रूप से उन पहले नेताओं में से थे जिन्होंने हिंदुत्व का एक विचारधारा के रूप में आह्वान किया और इसे लोकप्रिय भी बनाया. भाजपा उनकी विचारधारा के साथ आगे बढ़ रही है लेकिन समाज में सबके लिए सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का पार्टी का विजन हमेशा से ही शीर्ष पर रहा है.

अब भाजपा पूरी ताकत से इस राष्ट्रवादी नेता के पक्ष में खड़ी है. जिसको छह दशकों तक देश पर शासन करने वाली पार्टी कांग्रेस ने नजरअंदाज कर दिया था. बीजेपी का दावा है कि ‘ एक परिवार द्वारा संचालित पार्टी’ ने वीर सावरकर जैसे राष्ट्रवादी नेताओं की विरासत को नष्ट कर दिया और केवल और केवल गांधी परिवार को आगे बढ़ाया.

भाजपा के नेतृत्व वाली प्रदेश की भी जितनी सरकारें हैं उसने भी सावरकर के योगदान को स्वीकार करने और उस पर पूरी ताकत के साथ खड़ा रहने की कोशिश की. मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले साल स्कूली पाठ्यक्रमों में वीर सावरकर को लेकर एक अध्याय शामिल करने की घोषणा की थी, जबकि यूपी सरकार ने भी राज्य बोर्ड के छात्रों को सावरकर की जीवनी से अवगत कराने की बात कही है. कर्नाटक में जब भाजपा की सरकार थी तो सावरकर के चित्र के अनावरण पर तत्कालीन विपक्षी कांग्रेस ने बड़ा विरोध जताया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद सिद्धारमैया सरकार ने इसे हटाने से परहेज कर लिया है.

जीकेटी/