बर्थडे स्पेशल : कभी तीरंदाजी के लिए नहीं थे 10 रुपये, कैसे ‘आम’ से ‘खास’ बनीं दीपिका कुमारी

नई दिल्ली, 12 जून . दीपिका कुमारी आज न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व तीरंदाजी में सम्मानित नाम हैं. उनका जन्म 13 जून 1994 को झारखंड की राजधानी रांची के रतू में हुआ था.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी के प्रमुख इवेंट्स में ‘गोल्ड’ पर निशाना साध चुकीं दीपिका कुमारी बचपन में कभी पेड़ पर लगे आमों पर पत्थर से निशाना लगाया कहतीं थीं. दीपिका को निशाना लगाने का इतना शौक था कि कुछ वक्त बाद उनके हाथों में तीर-कमान भी आ गया.

राम चट्टी गांव में एक छोटी-सी झोपड़ी में पली-बढ़ीं दीपिका का बचपन से ही तीरंदाजी के प्रति रुझान रहा. हालांकि, बचपन में दीपिका के तीर-कमान कामचलाऊ होते थे. ये बांस से बने होते थे.

दीपिका ने तीरंदाजी की शुरुआत अपनी कजिन बहन विद्या कुमारी को देखकर की थी. विद्या उस वक्त ‘टाटा आर्चरी एकेडमी’ में ट्रेनिंग ले रही थीं.

दीपिका ने बचपन में गरीबी को करीब से देखा है. उनके पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे. परिवार के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि बेटी के लिए तीरंदाजी उपकरण खरीद सके, लेकिन संसाधनों के अभाव के बावजूद दीपिका ने परिस्थितियों से कभी हार नहीं मानी.

दीपिका की चाहत ने उन्हें ‘टाटा आर्चरी एकेडमी’ पहुंचा दिया, जहां पोषक खानपान के साथ-साथ उन्हें बेहतर उपकरण भी मिले. ये उपकरण इतने महंगे होते थे कि दीपिका के परिवार के लिए इन्हें खरीदना मुमकिन नहीं था.

एक वक्त था, जब दीपिका के पास तीरंदाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए 10 रुपए तक नहीं थे. पिता उस वक्त किसी तरह से 10 रुपए का जुगाड़ कर सके थे, लेकिन टाटा आर्चरी एकेडमी में उन्हें भोजन, उपकरण और यूनिफॉर्म के साथ-साथ हर महीने 500 रुपये भी मिलने लगे.

‘आम’ पर निशाना साधते-साधते दीपिका जल्द ही ‘खास’ बन गईं और छोटे से शहर से निकलकर उन्होंने अपनी बड़ी पहचान बना ली.

अपनी स्किल्स के दम पर दीपिका ने कभी पीछे मुड़कर नहीं जीता. उन्होंने 2009 में कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई. उसी साल उन्होंने अमेरिका में 11वीं युवा विश्व चैंपियनशिप भी जीत ली. उस समय दीपिका महज 15 साल की थीं.

यहां से दीपिका अपने खेल को निखारती गईं. साल 2012 में उन्होंने तुर्की में आयोजित विश्व कप के व्यक्तिगत स्टेज में रिकर्व गोल्ड मेडल जीता. साल 2012 के अंत तक दीपिका महिलाओं की रिकर्व तीरंदाजी में वर्ल्ड नंबर-1 बन गईं.

दीपिका कुमारी 2012 लंदन ओलंपिक और 2016 रियो ओलंपिक के पहले दौर से बाहर हो गई थीं, लेकिन 2020 टोक्यो और 2024 पेरिस ओलंपिक के क्वार्टरफाइनल में उन्होंने अपनी जगह बनाई. अफसोस, इन चारों ओलंपिक में दीपिका कोई पदक भारत के नाम नहीं कर सकीं. दीपिका चार ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली इकलौती भारतीय तीरंदाज हैं.

दीपिका पांच बार (2011, 2012, 2013, 2015 और 2024) हुंडई तीरंदाजी विश्व कप फाइनल की रजत पदक विजेता हैं. उन्होंने साल 2018 में कांस्य पदक जीता है.

दीपिका कुमारी ने साल 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दो गोल्ड मेडल अपने नाम किए. इसी साल एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज पर निशाना साधा. वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडलिस्ट दीपिका एशियन चैंपियनशिप-2013 में भी स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुकी हैं. इनके अलावा 2011 और 2015 वर्ल्ड चैपियनशिप में दीपिका के नाम दो सिल्वर मेडल हैं.

दीपिका कुमारी को साल 2012 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, जबकि साल 2016 में ‘पद्म श्री’ अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

30 जून 2020 को दीपिका कुमारी ने अतनु दास से शादी रचा ली. अतनु और दीपिका की जोड़ी इससे पहले र इसके बाद कई तीरंदाजी के मुकाबलों में नजर आई. साल 2022 में इस दंपति के घर एक बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम ‘वेदिका’ रखा गया.

कभी दीपिका के माता-पिता चाहते थे कि बेटी की तस्वीर अखबारों में आए. आज आप नेटफ्लिक्स पर मौजूद डॉक्यूमेंट्री ‘लेडीज फर्स्ट’ में उनके जीवन के संघर्ष की कहानी को जान सकते हैं.

आरएसजी/एएस