बर्थडे स्पेशल : ‘द्रास का टाइगर’… जिसने अपनी जान के बदले पहाड़ की चोटियों से दुश्मन को खदेड़ दिया

नई दिल्ली, 28 अगस्त . ‘ये अंगूठी रख लो और मेरी मंगेतर को दे देना, मुझसे ये बोझ उठाया नहीं जाता’, अपने साथी को यह कहते हुए भारत मां का एक ‘वीर सिपाही’ दुश्मन को सबक सिखाने निकल पड़ा. हीर रांझा की प्रेम कहानियां तो आपने कई बार सुनी होगी लेकिन देश प्रेम के लिए अपने प्यार को भी कुर्बान करने वाले इस नौजवान की प्रेम कहानी आपकी आंखे नम कर देगी.

कैप्टन अनुज नय्यर. भारत मां के इस बहादुर बेटे का आज जन्मदिन है, जिसने मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान कर दी. अनुज का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था. उनके पिता प्रोफेसर थे जबकि मां दिल्ली यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में काम करती थीं. बचपन से ही बहादुर और देश प्रेम की भावना रखने वाले अनुज का नाम भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है.

अनुज की मां ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि उनका बेटे अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की को पसंद करता था. दोनों की सगाई हो गई थी और शादी की तारीख भी तय कर दी गई थी. 10 सितंबर 1999 को अनुज की शादी होनी थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था और 7 जुलाई 1999 को खबर आई की अनुज वीरगति को प्राप्त हो गए.

‘द्रास का टाइगर’, कैप्टन अनुज की जीवनी है. कैप्टन अनुज 1999 के कारगिल युद्ध में द्रास सेक्टर की सुरक्षा के लिए लड़ते हुए शहीद हुए थे. ‘द्रास का टाइगर’ किताब, अनुज की मां मीना नय्यर और हिम्मत सिंह शेखावत ने लिखी है.

दुश्मन खेमे में जाने से पहले अनुज ने अपनी सगाई की अंगूठी उतारकर अपने साथी को यह कहते हुए दे दी थी कि अगर वो जंग से जिंदा लौटते हैं तो वो अंगूठी वापस ले लेंगे, लेकिन अगर शहीद होते हैं, तो उनकी मंगेतर तक यह अंगूठी पहुंचा दी जाए. वह नहीं चाहते कि उनके प्यार की निशानी दुश्मन के हाथ लगे.

अफसोस, अनुज की शहादत के बाद उनके शव के साथ वह अंगूठी भी उनके घर पहुंची थी. तारीख 6 जुलाई 1999, 17वीं जाट बटालियन को पॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली थी. टीम की कमान 24 साल के कैप्टन अनुज के हाथों में थी. सामने कदम-कदम पर मौत थी. दुश्मनों की संख्या का कोई अंदाजा नहीं था, मगर कैप्टन का हौसला डगमगाया नहीं.

टीम अभियान के लिए आगे बढ़ने लगी लेकिन लगातार पाकिस्तानी घुसपैठियों की तरफ से भारी गोलाबारी हो रही थी. हर चुनौतियों को पार करते हुए वह मंजिल के बेहद करीब थे. जख्मी हालत में एक के बाद एक 9 दुश्मनों को ढेर कर दिया, पाकिस्तान के तीन बड़े बंकर तबाह कर दिए, लेकिन एक ग्रेनेड सीधा उनपर पड़ा और वह घायल हो गए थे.

उनकी टीम ने 4 में से 3 बंकरों को सफलतापूर्वक तबाह कर दिया, लेकिन चौथे बंकर को नष्ट करने के दौरान दुश्मनों की तरफ से दागे गए ग्रेनेड ने कैप्टन अनुज नय्यर को बुरी तरह घायल कर दिया था. गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी बची हुई टीम के साथ हमला जारी रखा. उनकी टीम का कोई सदस्य इस अभियान में नहीं बच पाया और कैप्टन अनुज नय्यर भी वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन दो दिन बाद ही प्वाइंट 4875 पर चार्ली कंपनी की विक्रम बत्रा के नेतृत्व वाली टीम ने भारत का वापस कब्जा हासिल किया.

7 जुलाई 1999, ये वो तारीख है जब अनुज के घर के फोन की घंटी बजती है और उनके पिता प्रोफेसर नय्यर को बताया जाता है कि “आज सुबह साढ़े पांच बजे, देश की महान सेवा करते हुए हमने अनुज को खो दिया.”

कैप्टन अनुज नय्यर का पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लिपटा हुआ दिल्ली पहुंचा तो परिवार के साथ एक लड़की भी फूट-फूटकर रो रही थी. यह वही लड़की थी, जिससे अनुज की शादी होने वाली थी. कैप्टन अनुज नैय्यर को युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र (भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार) दिया गया था.

एएमजे/एएस